Monday, October 28, 2013

फिल्म और समाज़

नाम के पीछे छिपा सामाजिक सम्मान भी अभिजात्य वर्ग की बपौती रहा है मुम्बईयाँ हिन्दी फिल्मो कें आईट्म सांग में अक्सर ऐसे नाम प्रयोग किए जाते है जो मध्यम या निम्न मध्यम वर्ग मे प्रचलित रहे हो यानि तफरीह,ठगी और नेत्रभोजन के लिए गरीब या औसत आय वर्ग के नाम को ठेलने की परम्परा रही है। मुन्नी,बबली,बबलू,शीला,पिंकी ये सब नाम हमारे आस-पडौस मे रोजाना सुनने को मिलते है जिसको वॉलीवुड कभी बदनाम कर देता है तो कभी जवान कर देता है।शहर का एक तबका ऐसा भी जो ऐसे नामों को मस्ती का पर्याय समझता है और बेचारे हमारे आसपास के ये किरदार कितनी असुविधा महसूस करते होंगे जब ये गीत बजते है इसका अहसास मनोरंजन के नाम पर बेचने जाने वाली चूरण की पुडिया हजम कर देती है जिसे हम फिल्म की जरुरत कहकर स्वीकृति भी देने लगे है।

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