Saturday, October 26, 2013

दीवाली


अपनी शर्तो पर जीने की आजादी लेने के लिए  मुद्रा की क्रांति जरुरी होतीन है  क्या तो आप फ़कीर हो जाए या फिर इतने अमीर की लोग बाध्य हो जाए आपकी जैसी भी  जीवनशैली हो उसको  स्वीकार करने के लिए...बाकी बीच में बहुत से त्रिशंकु बने भी लटके रहते है मेरी तरह से. मैं यह कतई नहीं कह रहा हूँ की पैसा ही सबकुछ है ऐसा नही पैसा सबकुछ नहीं है फिर भी दोस्तों बहुत कुछ तो जरुर है. आप चेतनासंपन्न भी हो और आर्थिक रूप से संपन्न भी यह इस कलि काल का सबसे बड़ा दुर्लभ संयोग है. अमूमन पैसा आपको दम्भी और स्वेच्छाचारी बना देता है लेकिन यदि आप चेतना और संवेदना के स्तर पर विकसित है तो आप इसका उपयोग एक साधन के रूप में कर सकते है मेरे हिसाब से मुद्रा एक साधन है लेकिन अक्सर लोग इसे साध्य मान बैठते है.... 
(दीवाली के नजदीक आते आते ऐसे मुद्रा प्रधान विचार आने ही लगते है शायद लक्ष्मी के वाहन उल्लू का असर होता है जो मेरे दिमाग पर अकेला ही सवार हो जाता है और लक्ष्मी मैय्या पैदल ही आपके दर पर दस्तक देती रहती है) :)  

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