Monday, October 28, 2013

उत्सव

चित्त से उत्सधर्मिता का विलोपन किसी विज्ञान के सिद्धांत की तरह नही है जिसको परखनली और रासायनिक क्रिया में उत्प्रेरक की सहायता से मापा जा सकता हो। जब आसपास के लोग गहरे उल्लास में डूबे हो बधाईयों शुभकामनाओं का मयकशी से बढकर दौर चल रहा हो ऐसे मे चुपचाप मन के किसी कोने में अनासक्ति के भाव मन से खुराक पा रहे होते है छोटी-छोटी खुशियाँ तलाशने की नसीहतें भी काम नही आती है बल्कि हर उत्सव से पहले और और हर उत्सव के गुजर जाने के बाद का पसरा आंतरिक अवसाद किसी योग की सिद्धि ने कम नही होता है जहाँ आप स्थितप्रज्ञ की तरह व्यवहार करते है आसपास के लोगो के लिए यह आश्चर्य,घृणा,अहंकार,हीनता का विषय हो सकता है लेकिन एक यात्री के लिए यह उन पडावों को सुस्ताने के बहानें देखने का अवसर होता है जिसमे दूनियादारी के लोग उत्सव में लीन होने का प्रदर्शन कर अपने अन्दर से उपजी अपनी रिक्तता को उत्सव के बहाने आरोपित कर रहे होते है।

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