Monday, July 20, 2015

यात्रा

दो लम्हों में बीच सिसकती छोटी सी दूरी अचानक से कई सौ किलोमीटर में तब्दील हो जाती है। यादों के बीहड़ में भटकतें दिल एक बार बागी हो जाए तो फिर उसका विश्वास हर किस्म के तंत्र से स्वत: उठ जाता है अतीत की कोई वाचिक सांत्वना उसे आत्म समपर्ण के लिए प्रेरित नही कर पाती है।
यूं ही अकेलेपन की दहलीज़ पर बैठ बुदबुदाते ख्याल आता है कि दो विपरीत दिशा में खड़ी छाया की प्रतिलिपियां संरक्षित रखना कितना मुश्किल काम हैं। गाहे बगाहे दिन में एक बार कम से कम एकबार मन दूरियों की पैमाईश फांसलों के पैमाने से करने बैठ जाता है।
रात में ठीक सोने से पहले एक ख्याल की गंध बरबस चेहरे पर मुस्कान लाती है तो हम सिकुड़ कर खुद को उस क्षण के हवाले करतें है तभी वक्त की सिलवट हमें करवट बदलनें का हुक्म देती है और हम तकिए से खिसक कर उस दुनिया की गोद में सिर टिका देते है जहां नींद तो आती है मगर न सुकून मिलता है और न मनमुताबिक़ ख्वाब।
कभी कभी याद यूं भी आती है और हमें अकेला छोड़ जाती है दुनियादारी के गणित के बीच जोड़ घटा गुणा भाग और हासिल के बीच हम भूल जातें जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा और उसका एक छोटा सा किस्सा।