Wednesday, September 20, 2017

मील-मील स्टील

तीसरे पहर की चाय का वक्त है। उन दिनों स्टील के गिलास में चाय पीते थे। मुझे स्टील के गिलास मे कम दूध वाली चाय शिद्दत से याद आती है।
चाय अपने आप मे एक माया है। चाय बतकहियों की सबसे चुस्त गवाह है। चाय पीते वक्त जाम की तरह आंखों में देखने की कोई अनिवार्यता नही है आप नजरें इधर-उधर किए भी चाय पी सकते है।
चाय पर की गई बातों का यदि भाषा वैज्ञानिक अध्ययन करें तो उनका मनोवैज्ञानिक बन जाना एकदम स्वाभाविक है।
चाय पर जो विषय छिड़ते है उनके पुरातात्विक सन्दर्भ कोई कुशल अध्येता उपनिषदों में भी खोज सकता है।
चाय मनुष्य के मामूलीपन का एक तरल दस्तावेज़ है जिसे पढ़ने के लिए सांसे गर्म करनी पड़ती है।
तुम्हारे हाथ की बनी चाय को मात्र पीना नही उसे जीना पड़ता है ये चाय कोई उत्तेजक पेय नही बल्कि तुम्हारी हाथ की बनी चाय जीवन के निष्फल आक्रोशों को शांत करने का एक दिव्य आयोजन है।
तुम्हारे हाथ की बनी चाय का अपना एक अरोमा विज्ञान है ये विभिन्न गन्धों का एक आकस्मिक फ्यूजन है उसके बाद चाय की स्मृतियां को खुद को माफ करने के लिए गवाह के तौर पर उपयोग किया जा सकता है।
तुम्हारे साथ और तुम्हारे हाथ की चाय पीने के बाद मैं सत्य के लिए दीक्षित हो गया हूँ अब जीवन की क्रूरतम सूचना मैं चाय पीते वक्त सुन सकता हूँ और अपनी सीमाओं का चिन्हीकरण कर सकता हूँ।
आज फिर स्टील की गिलास में चाय पीने का मन हो आया है, गिलास में चाय पीना यह बोध कराता है कि आप चाय के प्रेम में डूबे है और चाय को हर किस्म की सजावट से दूर रखना चाहते हो।
तुम्हें याद होगा चाय का गिलास थमाते हुए तुमने एक बार कहा था कि ध्यान से चाय थोड़ी गर्म है मगर मैं फिर भी बिना फूंक मारे पहली घूंट भर गया था। तब तुम्हें यह मेरी एक अच्छी आदत लगी थी मैनें जब इसका कारण जानना चाहा तो तुमने कहा कि मुझे अच्छी बात यह लगी तुम अपने अनुभव से सावधान होना पसन्द करते हो किसी के आग्रह और चेतावनी से नही।
चाय ने मुझे चैतन्य किया था और तुमनें मुझे शुभकामनाएं दी थी तुम्हारा चाय बनाने का कौशल अनुमान और अनुपात का दास नही था इसलिए चाय को लेकर तुम्हारा परफेक्शन का कोई दावा नही था।
तुम,चाय और वो समय आज भी जेहन में यूं ही अटका हुआ है न चाय ठंडी हुई है और न मैं ही चाय पीना भूला हूँ फिर क्या है जो ठहर गया है?
शायद वक्त ! मगर इसमें शायद लगा है इसलिए इस पर भरोसा नही किया जा सकता है। भरोसे की समीक्षा के लिए हम किसी दिन साथ चाय पीएंगे। वो दिन अभी तय नही है इसलिए वो दिन कैलेंडर का सबसे पवित्र दिन है ये बात मैं चाय पीते हुए कह रहा हूँ
उम्मीद है तुम मेरी इस उपकल्पना से जरूर सहमत होंगी ठीक वैसे जैसे तुम अपनी और मेरी चाय पीने की तलब से कभी सहमत हुआ करती थी।

©डॉ. अजित

'मील-मील स्टील'