दिल की बस्ती में अधूरेपन कुछ मुहल्ले हैं. कुछ तंग गलिया अंत पर जाकर आपस में मिल जाती हैं.दीवार दिखती जरूर है मगर उसके सहारे खड़ा नही हुआ जा सकता है.स्मृतियों के जंगल से कभी कभी ठंडी हवा आती है अफ़सोस ये हवा भी इस दीवार को लांघ नही पाती.हम जब खुद को कुछ आवारा टीलो के ओट लेने के आदी बना चुके होते हैं तब इन गलियों में आकर सच में हमारा दिशाबोध समाप्त हो जाता है.खुद के सबसे सुखद पल को इसी दीवार सहारे उकडू बैठ कर सोचने लगते है.दरअसल वक्त के बीतने के बावजूद भी बहुत कुछ हमारे अंदर ऐसा बच जाता है जो न बीत पाता है और न रीत ही पाता है. समय का एक छिपा हुआ सच हमें चौकाने का भी है. अंतर्मन हमेशा अनापेक्षित को सोचने से इंकार करता है मगर जब वो घटित हो जाता है तब दिल में अफ़सोस के बादल जरूर आकर बेमौसमी बारिश कर जाते हैं.
जीवन को एक यात्रा भी मान लिया जाए तब भी हमारी मंजिल के अदलते बदलते पतों की वजह से यह तय करना जरा मुश्किल होता है कि किसका साथ और किसका हाथ कब कहाँ छूटने वाला है.जीवन में सबसे उपेक्षित पड़े पल दुःख की घडी के सच्चे साथी सिद्ध होते हैं.एक वक्त पर जो लोग जीवन में अपरिहार्य रूप से शामिल थे वे कब किस असावधानी की वजह से हाथ छोड़ देते हैं पता ही नही चलता है. कुछ ऐसे लोग जिन पर हमारी 'एक्सक्लूसिव खोज' का दावा रहा होता है वो कब बेहद मामूली चीज़ों के लिए अपना चयन अलग दिशा में सिद्ध करने में लग जातें हैं.
दरअसल किसी का मिलना और मिलकर बिछड़ना एकबारगी फिर भी स्वीकार किया जा सकता है मगर समय की अवांछित षडयंत्रो और समय के एक खास दबाव से उपजे विकल्प को देखते हुए अपनी स्मृतियों के सबसे निर्वासित कोने में छोड़ कर आने में जो थकान होती है उसकी टीस गाहे बगाहे दिलों में बेचैनियों के लिफ़ाफ़े खुले छोड़ देती है उनसे रिसते लम्हों की नमी से दिल ओ जेहन की आद्रता हमेशा बढ़ाती रहती है.यह एक जानलेवा बात जरूर है.
धीरे धीरे सब कुछ व्यवथित दिखता है क्योंकि समय इस नियति की चक्र पर हंसकर आगे बढ़ जाता है और हम पीछे मुड़कर देखते हुए अपनी आस्तीन अक्सर शाम को गीली करते रहते है.शाम और रात आवारा किस्सों और खयालो की सराय हैं जहाँ के नीम अँधेरे में हम चुपचाप सिसकते है और अपनी रौशनी पैदा कर लेते हैं. ये हंसी ये मुस्कुराहट इसी रौशनी की पैदाइश है जिस पर दुनिया फ़िदा होती है.
'मन की सराय'
जीवन को एक यात्रा भी मान लिया जाए तब भी हमारी मंजिल के अदलते बदलते पतों की वजह से यह तय करना जरा मुश्किल होता है कि किसका साथ और किसका हाथ कब कहाँ छूटने वाला है.जीवन में सबसे उपेक्षित पड़े पल दुःख की घडी के सच्चे साथी सिद्ध होते हैं.एक वक्त पर जो लोग जीवन में अपरिहार्य रूप से शामिल थे वे कब किस असावधानी की वजह से हाथ छोड़ देते हैं पता ही नही चलता है. कुछ ऐसे लोग जिन पर हमारी 'एक्सक्लूसिव खोज' का दावा रहा होता है वो कब बेहद मामूली चीज़ों के लिए अपना चयन अलग दिशा में सिद्ध करने में लग जातें हैं.
दरअसल किसी का मिलना और मिलकर बिछड़ना एकबारगी फिर भी स्वीकार किया जा सकता है मगर समय की अवांछित षडयंत्रो और समय के एक खास दबाव से उपजे विकल्प को देखते हुए अपनी स्मृतियों के सबसे निर्वासित कोने में छोड़ कर आने में जो थकान होती है उसकी टीस गाहे बगाहे दिलों में बेचैनियों के लिफ़ाफ़े खुले छोड़ देती है उनसे रिसते लम्हों की नमी से दिल ओ जेहन की आद्रता हमेशा बढ़ाती रहती है.यह एक जानलेवा बात जरूर है.
धीरे धीरे सब कुछ व्यवथित दिखता है क्योंकि समय इस नियति की चक्र पर हंसकर आगे बढ़ जाता है और हम पीछे मुड़कर देखते हुए अपनी आस्तीन अक्सर शाम को गीली करते रहते है.शाम और रात आवारा किस्सों और खयालो की सराय हैं जहाँ के नीम अँधेरे में हम चुपचाप सिसकते है और अपनी रौशनी पैदा कर लेते हैं. ये हंसी ये मुस्कुराहट इसी रौशनी की पैदाइश है जिस पर दुनिया फ़िदा होती है.
'मन की सराय'