Wednesday, September 14, 2016

गुलमोहर

तुम्हारे शहर का गुलमोहर मुझे याद करता है।कल ही उसकी एक चिट्ठी मिली।चिट्ठी में लिखा है वो मुझसे मिलना चाहता है।आख़िरी बार जब उसके नीचे मै खड़ा था उसने मेरी आत्मा के कई तस्वीरें ली थी।वो उनके निगेटिव मुझे दिखाना चाहता है। मै सोच रहा हूँ कि निगेटिव ही क्यों दिखाना चाहता है फोटो क्यों नही।

आगे चिट्ठी में लिखा है वो मुद्दत से मेरी इंतजार में था। जिस दिन नगर निगम ने उसे पौधे के रूप में लगाया था, उसी दिन से उसे पता था मै एकदिन जरूर आऊंगा। वो एक बोझिल शहर में खड़े खड़े थक गया था। मगर जिस दिन मै उसकी छाँव में खड़ा था उसने हवाओं की मदद से एक स्वागत गान गाया और अपनी बारीक पत्तियों से फूलों का काम लिया इस तरह से उसने मेरा स्वागत किया।
जब मै अपने बालों में फंसी उसकी पत्तियां हटा रहा था तब वो जोर से हंसा था जोकि उसकी आख़िरी हंसी थी।ये बात भी उसने अपनी चिट्ठी में लिखी है।

आगे गुलमोहर लिखता है कि जब भी तुम फर्र से उसके सामने से गुजर जाती हो वो पूछना चाहता है तुमसे कि मै कब आऊंगा?मगर तुम्हारी गति और व्यस्तता देखकर वो अपना सवाल और आत्मविश्वास दोनों खो बैठता है।

तुम्हारे शहर का गुलमोहर रास्तों से मेरे बारें में पूछता है मिट्टी उसकी व्याकुलता पर हंसती है।धूल उसकी चोटी पर जाकर बैठ जाती है और बहुत कम आवाज़ में मेरे बारे में खुसर फुसर करने लगती है। उसे उसकी आवाज़ सुनाई नही देती है वो कहता है जोर से बोलो मगर तब तक हवा उसे अपने साथ उड़ा ले जाती है। हवा के पास मेरे पसीने का डीएनए है धूल और हवा मिलकर तय करती है कि उन्हें ये पता लगाना होगा मै मूलतः हूँ किसका।

गुलमोहर ये सब देखकर उदास हो जाता है तुम्हारे शहर की हवा मिट्टी धूल रास्ते चौराहें सब मिलकर मेरी पड़ताल में लगे है मगर मै कैसा हूँ कहाँ हूँ इसकी कोई खोज खबर नही ले रहा है।

चिट्ठी के मध्य में गुलमोहर कहता है कि उसने कल सूरज से बात की और कहा कि आज वो एक दिन के लिए उपवास पर रह लेगा इसके बदले वो चाहता है कि सूरज की किरणें रोशनदान या खिड़की से तुम्हारे कमरें में दाखिल हो और तुम्हारी पलकों में सोए हुए ख्वाब से बातचीत करें और इस बातचीत में इस बात का सुराग लगा लें कि मै कब आ रहा हूँ। या ये ही पता चल जाए कहीं हमारे बीच अबोला तो नही चल रहा है।

सूरज ने उसकी बातें मान ली है मगर किरणों ने सूरज को मना कर दिया है उनका तर्क है पहले तो  ये दो लोगो की निजता में दखल है दूसरा तुम उस वक्त तक नही सोती जब किरणें तुम्हारे आंगन में दाखिल होती है इसलिए वो बस इतना बता सकती है कि तुम उदास हो या खुश हो।

सूरज खेद सहित गुलमोहर से कहता है कि वो इतनी ही जानकारी लाने में समर्थ है। इस पर गुलमोहर कहता है ये जानकारी उसके किसी काम की नही है क्योंकि तुम उदासी में खुश और खुशी में उदास दिख सकती हो इससे उसे कोई अनुमान न मिलेगा।

सूरज खुद के ओजविहीन होने पर थोड़ा निराश होकर बादलों के पीछे छिप गया है उसकी ग्लानि को गुलमोहर समझता है इसलिए वो दो दिन उपवास करता है सूरज के जाने पर बादलों की एक टोली मसखरी करती है क्योंकि उनके पास मेरी कल की एक खबर है जब मै अचानक से आई बारिश में भीग गया था। बादल अपने संचार तंत्र पर मोहित है वो अपनी बूंदों के हाथों के ये खबर गुलमोहर तक पहुँचाते है मगर इसके बदले वो चाहते है उसके नीचे की धरती जल से आप्लावित हो जाए।

गुलमोहर बताता है कि बादलों की सद्कामना के साथ छिपे हुए स्वार्थ को वो स्वीकार कर लेता है क्योंकि मै बारिश में भीग रहा हूँ इस बात से मोटे तौर पर एक बात तो पता चलती है कि मै स्वस्थ हूँ।
बूंदे बरसती है बादलों के खत पढ़कर गुलमोहर उसे धरती के हवाले कर देता है।

एकदिन जब तुम उसके सामने से गुजर रही थी तो अचानक से फोन आने पर तुमनें अपनी गाड़ी गुलमोहर के पास रोक दी ये देखकर गुलमोहर को खुशी हुई उसने उल्लास में कुछ पत्तियां तुम्हारी शक्ल देखनें के लिए भेजी मगर वो तुम्हारी कार के वाइपर पर अटक कर रह गई। तुम आगे बढ़ गई और गुलमोहर पीछे रह गया।

अंत में गुलमोहर मुझसे कहता है मै थक गया हूँ हवा बादल सूरज से अनुनय विनय करते हुए कोई भी मेरे बारे में प्रमाणिक सूचना देने में असमर्थ है वो नाराज़गी की लहजे में कहता है मैने खुद को इतना बंद क्यों बनाया हुआ है कि किसी कोई अनुमान नही मिल पाता है मै कहाँ हूँ और कैसा हूँ।

गुलमोहर कहता है चिट्ठी मिलते ही आने के बारे में सोचना और सोचना नही आना ही पड़ेगा इससे पहले वो अनमना होकर शहर की तरफ से आँख मूँद ले वो मुझे एक बार देखना चाहता है मिलना चाहता है। क्यों मिलना चाहता है इस बात का जवाब वो इस बार मिलकर ही देगा ये लिखकर गुलमोहर ने चिट्ठी को खत्म किया और कलम कागज़ पर ही तोड़ दी है।

मैं पहले चिट्ठी पढ़कर खुश हुआ बाद में उदास हो गया हूँ। अब मुझे जाना ही होगा भले ही मेरे इर्द गिर्द कितनी हो भौतिक मानसिक बाधाएं हो गुलमोहर के लिए कम से कम एक बार उस शहर में जरूर जाऊँगा भले ही ये हमारी आख़िरी मुलाकात क्यों न हो।

'एक खत गुलमोहर का'