Tuesday, August 9, 2022

बहुत ज्यादा प्यार भी अच्छा नहीं होता

 

बहुत ज्यादा प्यार भी अच्छा नहीं होता

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फिल्म मजबूर में किशोर कुमार के द्वारा गाए एक गाने की ये पंक्तियाँ हैं. बहुत ज्यादा कितना ज्यादा होता है या कितने ज्यादा को बहुत ज्यादा कहा जा सकता है यह सवाल जरुर पेचीदा है मगर यह सच है कि एक समय के प्यार की तीव्रता कतिपय अर्थों में आत्मघाती होने की तरफ बढ़ने लगती है.

कुछ दोस्तों को इस कथन पर आपत्ति हो सकती है कि बहुत ज्यादा के क्या कोई एक नियत पैमाने हो सकते हैं? या फिर वे कह सकते हैं प्यार कभी इतना सोच समझकर नहीं किया जाता कि उसमे यह ध्यान रखा जाए कि कितना प्यार करना है या कितना नहीं करना है.

मनोवैज्ञानिक तौर पर प्यार एक खूबसूरत एहसास है जो हमें अंदर से खूबसूरत बनाता है जब हम किसी से प्यार कर रहे होते हैं तो हम समानांतर रूप से खुद से भी प्यार कर रहे होते हैं. प्यार एक ऐसा इमोशन है जिसकी प्रकृति अत्याधिक तरल होती है. यही कारण होता है कि प्यार के साथ-साथ अधिकार,शंका, दुविधा,ईर्ष्या, डर,असुरक्षाबोध आदि अन्य भाव भी गडमड होकर साथ चलते हैं इसलिए प्यार के सबके अनुभव अलग-अलग होते हैं.

किसी को पाने की चाह रखने में कोई बुराई नहीं है मगर किसी को हमेशा के लिए संभाल कर रखने के लिए एक अलग किस्म के कौशल की आवश्यकता होती है. प्राय: सभी प्रेमी यह कौशल अर्जित नहीं कर पाते हैं.

जिस गीत का जिक्र शीर्षक में किया गया है उसी गीत में आगे दामन छुड़ाने की बात आती है. सवाल तो यह भी उठता है कि कोई व्यक्ति हमारी ज़िन्दगी के लिए इतना महत्वपूर्ण है तो फिर उससे दामन छुडाने का ख्याल ही क्यों लाना? क्या उसे सदा के लिए अपने संग संजो कर नहीं रखा जा सकता है? शायद हम जिसे चाहते हैं उसे एकदिन खोना ही नियति होती है इसलिए बाद की तकलीफों से बचने की युक्ति के तौर पर गाने में कहा गया है कि बहुत ज्यादा प्यार भी अच्छा नहीं होता.

खोना-पाना,मिलना-बिछुड़ना यह सब पहले से तय होता है यह बात हमारा दिमाग एकबारगी मान सकता है मगर हमारा दिल इस सच को स्वीकार करने में हमेशा ना-नुकर करता है. प्यार की क्या कोई एक नियत मात्रा हो सकती है? शायद नहीं. प्यार की मूल प्रकृति अपरिमेय है. बल्कि यह लगातार विस्तार की तरफ आगे बढ़ता जाता है. यदि हम प्यार को किसी  ख़ास दायरे में सीमित भी करना चाहे तो भी हम ऐसा नहीं कर सकते हैं  क्योंकि एक समय के बाद बात हमारे बस से बाहर हो ही जाती है.

जब कोई किसी से प्यार करता है तो फिर वह भविष्य के बारे में न्यूनतम सोचता है उसके वर्तमान ही सबसे अधिक सुखद लगता है ये अलग बात है कि अतीत और भविष्य मिलकर अपनी कार्ययोजना को अंजाम देने में लगे रहते हैं.

प्यार को लेकर किसी निष्कर्ष पर पहुँचना जल्दबाजी होगी. फ़िलहाल मुझे वामिक जौनपुरी साब का एक शे'र याद आ रहा है जिसका जिक्र यहाँ करना मौजूं होगा-

'जहां चोट खाना,वहीं मुस्कुराना

मगर इस अदा से , कि रो दे जमाना