Tuesday, March 28, 2017

अला-बला

उस लड़की के हाथ में सिखणी वाला कड़ा था. उसी हाथ की बाजू पर किसी मौलवी का दिया एक काला ताबीज़ भी बंधा था।
वो चप्पलों में ऐसे अंगूठे गड़ाकर चलती जैसे उसे खुद के जमीन पर होने का पूरा यकीन न हो।

उसको पीछे मुड़कर देखते हुए लगता है जैसे कोई जंगली बेल दूसरे पेड़ को अपनी गिरफ्त में लेना चाहती हो।
मेले और साप्ताहिक हाट बाजार में उस लड़की को देखकर ऐसा लगता जैसे वो मनुष्यों की जरूरत और उत्सवधर्मिता का दस्तावेज़ीकरण करने के लिए नियुक्त की गई हो।

वो चंचल नही थी उसमें कोई ठहराव भी नही था वो नदी के जैसी तरल थी और किनारों के जैसी सुनसान।
उसके हाथ में जो स्टील का कड़ा था वो उसके हाथ में ऐसा दिखता था जैसे ग्रह का कोई उपग्रह अपनी नियत कक्षा में चक्कर लगाता हो उसकी बाजू पर कसा हुआ ताबीज़ उसे भला कैसे किसी अला बला से महफूज़ रख पाता  क्योंकि वो लड़की खुद में एक हसीन बला थी।

एक ऐसी बला जो जिधर से गुजर जाए उन रास्तों पर हकीकी सुरमें बिखर जाए।
उसकी आँखों में सूखा काजल था वो बेपरवाह और बेफिक्र जीने की आदी थी उसने रच ली थी अपनी लापरवाही में एक अनूठी खूबसूरती।

वो हवा को लोरी से सुला सकती थी बादल को गुनगुनाकर बुला सकती थी। बारिश को वो ओक में भरके मंत्र की तरह उड़ा सकती थी।
आसमान उसे देख रश्क करता था ज़मीन उसके वजन के बराबर के दुःख देख रोया करती थी।

'वो लड़की'
© डॉ. अजित

Friday, March 24, 2017

सुविधा-असुविधा

दृश्य एक:
बुद्धिस्ट मोनेस्ट्री की एक शाम है. बौद्ध भिक्षुक शाम की प्रार्थना के लिए तैयार है. एक बच्चा अंदर दाखिल होता है. वो जोर से कोई गाना गा रहा है. उसके गाने की आवाज़ मोनेस्ट्री की शान्ति में बड़ी बाधा है.
एक लामा उसको रोकना चाहता है वो उसके नजदीक आकर कहते है. 
बच्चे यहाँ गाना मत गाओ ये साधना करने की जगह है!
बच्चा रुक जाता है फिर वो लामा से पूछता है साधना करने की चीज़ है या घटित होने की?
लामा इस अप्रत्याशित सवाल से हैरान होता है वो बच्चे से कहता है ये अभी तुम्हारा विषय नही इसलिए इसका जवाब तुम्हे नही दिया जा सकता
तो गाना आपका विषय कैसे हुआ? बच्चा लामा से पूछता है
मेरा विषय यहाँ की व्यवस्था से सम्बंधित था. गाना उसमे एक बाधा उत्पन्न कर रहा था अब लामा बच्चे से थोड़े चिढ गया है
बच्चा हंसता है और कहता है व्यवस्था तो एक सुविधा हुई और साधना तो सुविधा को तोड़ने की प्रक्रिया है
लामा अब शास्त्रार्थ की मुद्रा में आ गया है उसका अहम् आहत हुआ है बच्चे की बातों से
मगर बच्चा तेजी से गाना गाता हुआ हुआ बाहर निकल जाता है
लामा चिल्लाता हुआ कहता है दीप जाओ अँधेरा हो गया है.
दृश्य दो:
शशि के पास एक चश्मा है. चश्मा उसका दोस्त है ऐसा दोस्त कि उसे वो मंजन करते वक्त भी नही उतारती है उसका बस चले तो वो चश्मा लगाए ही मुंह भी धो ले.
आज शशि का चश्मा नही मिल रहा है रात उसने बिस्तर के नजदीक किताब पर रखा था. सुबह जगी तो चश्मा वहां नही था. शशि परेशान है वो बेहताशा तलाश रही है मगर नही मिला. थक कर वो बालकनी में बैठ गयी है.
शशि थोड़ी उदास है. शशि खुद से सवाल कहती है कि जिंदगी में कोई चीज़ इस तरह शामिल नही करनी चाहिए कि जिसके बिना काम न चल सके. वो खुद को छूकर देखती है उसकी देह उसका खुद का स्पर्श भूल गई है. वो अपनी आँखे बंद करके बैठ जाती है अपने दोनों कानों बारी बारी हाथ फेरती है दरअसल वो यहाँ भी अपना चश्मा तलाश रही है.
खोई चीजे बार बार तलाशने की आदत मनुष्य को बहुत कष्ट देती है वो हर जगह एक ही चीज तलाशता है. यह आदत निर्जीव और सजीव दोनों में कोई भेद करना नही जानती है.
शशि अपने चश्मे का कवर देखती है और अपने ऑप्टिकल शॉप का फोन नम्बर कागज़ पर नोट करती है. फिर उस कागज़ को फाड़कर बालकनी से नीचे फेंक देती है. शशि ने कुछ दिन बिन चश्मे के रहने का निर्णय किया है.
तभी चश्मा उसे दिख जाता है मगर उसे देखकर उसे ख़ुशी नही हुई उसे अपने निर्णय के कमजोर होने का दुःख जरुर हुआ उसने चश्मे को फिलहाल कवर में बंद करके रख दिया अपने निर्णय के प्रति यह उसका अधिकतम आदर था क्योंकि चश्मा लगाने वो बच नही पाएगी ये बात वो भी अच्छी तरह जानती है.
© डॉ. अजित

Thursday, March 23, 2017

सफ़र

दृश्य एक:

समन्दर में क्रूज़ पर शाम हो गई है. डॉक पर एक किशोर अकेला बैठा है. वो आसमान की तरफ देखता है मगर कोई पक्षी नजर नही आता है. ये उसकी उम्मीद की पहली हत्या है. वो आसमान और समन्दर के रंग का मिलान करता है उसे समन्दर काला दिखाई देता है और आसमान नीला. समंदर और आसमान के मध्य दूरी अधिक है इसलिए वो प्रतिबिम्ब के विज्ञान को अस्वीकार कर देता है.
एक बुजुर्ग वहां आते है जिनके हाथ में एक बीयर की कैन है. दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते है बुजुर्ग की मुस्कान किशोर से कई गुना लाइव है. बुजुर्ग किशोर से पूछता है समंदर में अकेले कैसा लगता है? किशोर जवाब देता है ठीक ऐसा कि जैसे कि मैं समंदर का छोटा भाई हूँ.
किशोर बुजुर्ग के नजदीक जाकर कहता है जीवन में क्या चीज हमेशा प्यारी रहती है? बुजुर्ग कहता है आदमी को अतीत हमेशा प्यारा लगता है. किशोर फिर एक प्रतिप्रश्न करता है जिनका अतीत गौरवशाली न रहा हो वो कैसे अपने अतीत को प्यार समझ सकते है? बुजुर्ग इस परिपक्व सवाल पर थोड़ी देर ठहर कर सोचते है और कहते है जिनका अतीत गौरवशाली नही रहा हो और वो वर्तमान और भविष्य की कल्पना पर अतीत को खारिज करके अतीत को याद करते है. अतीत जीवन में कभी अप्रासंगिक नही होता है. किशोर इस जवाब से संतुष्ट है फिर दोनों एक दूसरे की तरफ पीठ कर लेते है इस तरह से अतीत और भविष्य एक दूसरे से दूरी बनाते है.

दृश्य दो:

ये समंदर की सुबह है. एक नव विवाहित जोड़ा क्रूज़ पर हनीमून मनाने आया है जिनका नाम फिलिप और मारिया है. फिलिप पेशे से कारपेंटर है और मारिया एक नर्स है. दोनों एक दूसरे का हाथ थामे समंदर को देख रहे है. मारिया फिलिप से पूछती है कि सच्चा प्यार क्या समंदर के जैसा अनंत होता है? फिलिप कहता है नही सच्चा प्यार डेजर्ट के जैसा शुष्क और अनिश्चित होता है. मारिया इस बात पर कोई व्याख्या नही चाहती.
फिलिप मारिया की आँखों में झांकते हुए कहता है तुम्हारी आँखों में इस समंदर का एक टापू दिखता है मगर वहां मैं खुद को नही देख पा रहा हूँ वहां तुम अकेली हो. मारिया कहती है तुम सच देख रहे हो हर स्त्री के मन में एक टापू ऐसा होता है जहां उसका सबसे प्यारा व्यक्ति नही होता है. फिलिप कहता है क्यों बचा कर रखा जाता है इस टापू को? मेरे ख्याल से आँखों की बारिश के रास्ते इसे बहा देना चाहिए. मारिया एक फीकी मुस्कान के साथ कहती  है इस टापू की न कोई नियत जगह और न कोई नियत आकार और ये इतनी तेजी से अपनी जगह बदलता है कि हम स्त्रियाँ इसका अनुमान नही लगा पाती है. इस टापू का होना एक उम्मीद का होना भी है कि हम अपने हिस्से का निर्वासन एकांत की गरिमा के साथ काट लेंगी और हमें भीड़ का हिस्सा बन गुम नही होना पडेगा.
फिलिप मारिया को गले लगाता है और अनायास ही टापू का एक पतनाला मारिया की आँखों के रास्ते फिलिप के कंधे पर आकर गिरता है समंदर इस तरह की पहली बारिश देखता है जिसकी एक भी बूँद उसे हासिल नही होगी.

© डॉ. अजित 

Thursday, March 16, 2017

नीलामी

लंदन की मशहूर ऑक्शन गैलरी क्रिस्टीज़ में एक युवा लड़का ऑफिस में पूछ्ताछ करने के उद्देश्य से दाखिल होता है.रिसेप्शन पर पूछ्ताछ करता है. रिसेप्शन पर अटेंडेंट उसकी क्वारी को समझ नही पा रही है. लड़का कहता है वो अपने जीवन के सबसे अमूल्य सपनें नीलाम करना चाहता है क्या उनका यहाँ कोई खरीदार मिल सकता है?

सपने कैसे नीलाम किए जा सकते है अटेंडेंट यह जानना चाहती है वो लड़के से पूछती है सपने कोई वस्तु है? जो उन्हें नीलाम किया जा सके !

लड़का कहता है नीलाम करने के लिए वस्तु होना एक छोटी चीज़ है उसे ऐसा ब्रोकर चाहिए जो उसके सपने नीलाम कर सके. लड़का कहता है उसके पास ऐसे सपने जिन्हें कोई भी खरीदकर दुनिया का सबसे अमीर आदमी बन सकता है.

अटेंडेंट जानती है वह उसकी कोई मदद नही कर सकती है मगर फिर वो उस बहुमूल्य सपने के बारें में जानना चाहती है जिसे बेचकर लड़का पैसा हासिल करना चाहता है. वो पूछती है आपके सपनें की क्या कीमत है?

लड़का हंसता हुआ कहता है काश ! मैं खुद अपने सपने की कीमत जान पाता मुझे उसकी जो कीमत पता है वो उसकी असल में कीमत नही है वो दरअसल मेरी जरुरत की कीमत है. अटेंडेंट थोड़े कौतुहल से घिर जाती है और कहती है आप अपने सपने को नीलाम करके कैसा महसूस करेंगे?

लड़का कहता है सपना नीलाम करके कोई भी खुश तो नही हो सकता मगर मैं इतने भर से संतोष कर लूंगा कि किसी ने मेरे सपने की सही कीमत लगाई. बेचने वाला खुद को हमेशा एक आत्मसांत्वना देता है कि उसका न्यूनतम मूल्य अभी गिरा नही है, यही हाल मेरे सपने का है मैं इसी उम्मीद पर यहा हूँ कि मेरे सपने का मूल्य शायद यहाँ मिल जाए.

अटेंडेंट कहती है चलिए फर्ज कर लेते है मेरे पास एक पार्टी है जो आपका सपना खरीदने में दिलचस्पी रखती है तब आप अपने सपने की बोली कितने से स्टार्ट करना चाहेंगे?

लडका अब थोडा उदास हो जाता है आपने मुझे यकीन दिलाकर अच्छा नही किया मैं ये सोचकर आया था कि इंसान खुद के सपनों में इतना खोया है वो दूसरे के सपने में क्यों दिलचस्पी लेगा? यदि सपनों की नीलामी सच में हो सकती है तो फिर दुनिया भर में सपने देखने वाले लोग सबसे बड़े व्यापारी है.

माफ़ी चाहूंगा मैंने आपका कीमती वक्त लिया मैं सपने नीलाम तो करना चाहता हूँ मगर उनकी कीमत जानने के लिए मुझे कुछ सपने और देखने होंगे, तब तक यदि आपकी पार्टी रुक सके तो देखिएगा, लडका इतना कहकर वापिस मुड़ जाता है.

अटेंडेंट कहती जिस दिन ये नीलामी हुई उस दिन ये नीलामी घर की आखिरी नीलामी होगी क्योंकि सपनें जहां बिकने शुरू हो जातें है वहां दूसरी चीजें खुद मूल्यहीन हो जाती है.

लडका ये सुनकर मुस्कुराता है मगर अटेंडेंट उसका चेहरा नही देख पाती है.

‘ड्रीम्स अनलिमिटेड’

© डॉ. अजित

चर्च

दृश्य एक:
विलियम चर्च के गार्डन की देखभाल करता है। मैरी उसकी बेटी है दोनों पिता पुत्री ईश्वर को बहुत मानते है।
मैरी एकदिन विलियम से पूछती है क्या गिल्ट मनुष्य को ईश्वर द्वारा दिया जाने वाला दंड है? विलियम उसको चर्च के गार्डन सबसे नाजुक फूल दिखाता है और कहता है हवा और बर्फ से लड़ने की जिद देखो ये जिद ईश्वर की प्रतीक है। मैरी समझ नही पाती वो कहती है क्या जिद को गिल्ट का एक कारण माना जा सकता है? विलियम उसके हाथ में टूटी हुई पत्तियां देता है और कहता मनुष्य की गिल्ट उसका टूटा हुआ अतीत है। जब मनुष्य अपने सन्दर्भ से कटा महसूस करता है तभी उसे गिल्ट होती है।
मैरी एक फूल को तोड़ना चाहती है मगर विलियम उसे मना करता है वो कहता है इसके तुम्हें फूल से आज्ञा लेनी होगी। मैरी पूछती है फूल से आज्ञा लेने का क्या तरीका है? विलियम कहता है किसी को तोड़ने के लिए उसकी देखभाल जरूरी होती है ताकि उसके मन ने जो सन्ताप बचे उसे घृणा शामिल न हो।
इसके बाद मैरी फूल को पानी देती है कोई गीत गुनगुनाने लगती है।

दृश्य दो:
फादर डिफोर्ड के पास एक कपल बैठा है। कपल फादर से पूछता जीसस के पास जिन प्रॉब्लम्स का कोई सॉल्यूशन नही होता है जीसस उनका क्या करते है फादर?
फादर के लिए ये सवाल अनापेक्षित है वो कहते है जीसस के पास किसी प्रॉब्लम्स का सॉल्यूशन नही होता है समाधान बताना उनका काम नही है!
फिर लोग उनसे अपनी प्रॉब्लम्स क्यों शेयर करते है? कपल पूछता है
लोग जीसस से नही खुद से अपनी प्रॉब्लम शेयर करते है जीसस केवल देखतें है जीसस के लिए यह देखना ईश्वर के द्वारा तय किया गया सबसे पवित्र काम है।
तो जीसस क्या केवल साक्षी है? वो हस्तक्षेप नही कर सकते? कपल थोड़े असंतुष्ट होकर सवाल करते है
बिलकुल मनुष्य की प्रॉब्लम को देखना जीसस का काम है प्रॉब्लम क्रिएट करना और उनके समाधान तलाशना मनुष्य का।
दरअसल इस धरती से लेकर उस लोक तक मनुष्य और ईश्वर अपने अपने काम में व्यस्त है दोनों की एक दुसरे में लगभग न के बराबर रुचि है, फादर इतना कहकर अपनी स्टडी रूम में चले जाते है।
कपल जीसस को देखते है और मुस्कुराते है जीसस यथास्थित में सलीब पर टँगे है उन्होंने क्या देखा ये केवल वही बता सकते है।

 © डॉ.अजित

Wednesday, March 8, 2017

सोफी

समन्दर किनारे सोफी अकेली बैठी है। वो रेत पर खुद का नाम लिख कर उसे एक गोल घेरे में कैद कर देती है फिर उसके नीचे एक कोने में स्माइल बनाकर केवल एस लिख देती है।
मुस्कान उसका स्थाई भाव है जो उसके चेहरे पर उदासी पढ़ने का अवसर नही देता है यहां तक खुद उसको भी।
***
सोफी कहती है समन्दर एक बहलावा है मै उससे पूछता हूँ फिर नदी क्या है? नदी एक यात्रा है जिसके सहारे हम किनारों का दुःख पढ़ सकते है।
दुःख क्या केवल लिखे जा सकते है मैंने दुःख पढ़ने पर उसकी प्रतिक्रिया चाहता हूँ इस पर सोफी कहती है दुःख केवल अपने अंदर बसाए जा सकते है वो निकले या न निकले ये उनकी मर्जी।
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क्या तुम्हें खुद के स्त्री होने पर खेद है? मैंने यूं ही पूछ लिया उस दिन जबकि उस दिन समन्दर किनारे इस बात को पूछने का माहौल नही था।
खेद दरअसल एक सुविधा है मगर खेद कोई मुक्ति नही इसलिए मेरी खेद में रूचि नही है मैं उत्सव और खेद से दोनों से मुक्त रहना चाहता हूँ स्त्री होना मेरे लिए मात्र एक अवस्था नही बल्कि एक अवसर है मै दुःखों को प्राश्रय दे सकती हूँ।
क्या अभी तुम्हारे गले लग सकता हूँ? मैने संकोच से पूछा
गले लगने का कोई समय नही होता है तुम जब चाहों लग सकते हो बशर्ते तुम्हें राहत नसीब हो।
सोफी इतना कहकर मुस्कुरा पड़ती है फिर गले लगने का ख्याल लहर के साथ समन्दर की तरफ लौट जाता है।
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#सम्वाद