Monday, August 3, 2015

सावन

सावन का महीना आधा साल बीतने पर हर साल आता है। जब आधा बीत चुका होता है तब यह हरजाईयों के दिल को तसल्ली देने के लिए अपने साथ बारिश बूंदो की झड़ी भी लाता है। न जाने क्यों सावन इस बात से अनजाना रहता है कि आधा साल बीतते बीतते मन की अंधेरी गलियों में रोज़ होती बारिश ने अंदर लगभग बाढ़ जैसी स्थिति बना दी होती है अब बचे हुए पांच चार महीनों में कुछ लोग उसकी की सीलन में दिल को जलाकर रोशनी की नाकाम सी कोशिस करने वाले होतें हैं। सावन का महीना मुझे कोई ईश्वरीय षड्यंत्र का हिस्सा लगने लगता है मानों बाहर की बारिश अंदर की बारिश से कोई बदला लेना चाहती हो। दिल के गलियारों से गुजरते हुए हम मन के उस निर्जन टापू पर बैठ अंखड रुद्राभिषेक को देख सकते है जो मन की छोटी छोटी कामनाओं की पूर्ति ना होने पर भी चेतना के शिव तत्व पर रोज़ नियमित रूप से करता जाता है। किसी की स्मृतियों के स्तम्भन में मन वचन कर्म की त्रियुक्ति से हरी भरी बेल पत्र का अर्घ्य देते हुए उसे शीत आंसूओं के भाप से धोते है हमारी अनामिका के निशान उन पर स्थाई रूप से छपे होते है।
दरअसल सावन का महीना उपासना और मन के अनुराग के बिना शर्त अपर्ण का महीना समझा जाता है मगर सही गलत की भौगोलिक सीमा रेखाओं में फंसे दिलों के लिए यह मन के रास्ते कुछ कोमल अहसासों के तर्पण का महीना बन जाता है। कुछ ऐसे विरक्त साधकों की पड़ताल करते हुए अपने चित्त में अवस्थित शिव शक्ति की अनुमति अनिवार्य होती है तभी अनहद के नाद में मध्य सूक्ष्म आहों की शंख ध्वनि हमारी प्रखर चैतन्यता को जाग्रत करती है और हम टिप टिप पड़ती बूंदों के मध्य प्रेम के पंचामृत का आचमन कर पातें हैं।
सावन का महीना मुक्ति के पांचजन्य शंख में ध्वनि फूंकता है तभी तो इस ध्वनि से जहां अंदर कुछ टूटता है हम  अतीत के आरोग्य के लिए महा मृत्युंजय मंत्र का जाप मन ही मन करने लगते है।मन का पंचाग उसी क्षण सावन की घोषणा कर देता है बाकि काल गणना के लिहाज़ से साल में एक बार सावन आता है जबकि काल से होड़ में लगे कुछ निर्वासित लोगो के बारह महीने के सावन में ही जीतें है।

'सावन में मन'

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