Saturday, August 1, 2015

चाँद

आसमां के रास्तें एक चांद रोज़ जमीं पर उतरता है। जिसे मै देखता हूं और नरगिस के फूलों की मानिंद उसे छूकर खुशबू को रुह का पता देना चाहता हूं मगर वो बेफिक्र मेरी बेकली देख सिर्फ मुस्कुरा भर देता है। उसकी अधखिली हंसी के नूर से मेरे जिस्म की महीन परत बिखर जाती है उसकी रोशनी में मै खुद को पहले से ज्यादा साफ पाता हूं। दिल के गलियारों में सूफियों की टोली बसती है जो मुझे कलन्दर होने का इल्म अता करना चाहती है मगर उसे अभी मेरे गाफिल होने को लेकर शक ओ सुबहा है।
कभी कभी कायनात भी सब्र का इम्तेहान लेने लगती है चांद के पास तारों की गवाही है इसलिए वो खुद को सिर्फ मेरा होने का समन तामील नही होने देता उसके पास बारिश की बूदों के छोटे छोटे वजीफे है जो उसने बादलों से उधार लिए थे मुझ से रोज़ चांद चंद आवारा मसीहाओं के पते पूछता है और रोज़ अपनी याददाश्त का हवाला देकर बच जाता हूं। मेरे अपने वजूद के डर मुझ पर इस कदर तारी है कि मै ख्यालों की कतरन से किस्सागोई की पंतग उडाता हूं मगर उसकी डोर मेरे हाथ में नही है उसे वफा के कारोबारियों ने मुझसे छीन लिया है। मरासिम के खलीफाओं की बसती का मै अकेला गैर इल्मदार फकीर हूं।
चांद से मै इल्तज़ा की शक्ल में गुजारिश सौपता हूं खुद को खारिज़ करके अपने इश्क और जुनून की गवाही देता हूं मगर वो मेरा हाकिम बनने से मुकर जाता है जबकि उसने तन्हाई की सिसकियों में मेरी माथे पर भरोसे और उम्मीद का बोसा रफू किया था। पता नही मुझमें और चांद में कौन किसका मुरीद है कौन किसका मुर्शिद है। चांद को मुझसे इश्क है यह नही जानता मगर रात के तीसरे पहरें मे जब चांद सबसे अकेला होता है तब उसे मेरी तलब जरुर लगती है तभी तो वो खिडकी से रोशनी की शक्ल में मेरे सिराहने दाखिल होता है उसे पता है उस वक्त मै ख्वाबों में उसी को तलाश रहा हूं।
तमाम इल्म और अदब की पैबन्द के बावजूद मेरे अक्स में रोशनी आरपार दाखिल होती है मेरा वजूद वक्त की नमी से पसरी सीलन की वजह से इतना चुपचाप करवट बदलता है कि खुद मुझे खबर नही होती है। चांद मेरी बर्बादियों का चुस्त तमाशबीन है वो रुह की हरारत की वजह जानता हुआ इल्म के दवाखाने से मेरे लिए शिफा का शरबत नही लाता उसकी ठंडी आहों में तपन है जिसमें मै रोज जलता हूं एकदिन ऐसे ही जलता हुआ चांदनी के बीच कोयले से राख में तब्दील हो जाउंगा।

...अब मैने गुनगुनाना बंद कर दिया है चंदा रे चंदा कभी तो ज़मी पर आ बैठेंगे बातें करेंगे !

©डॉ.अजित

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