Sunday, October 20, 2013

एक किरदार ऐसा भी......



बातें अपने गांव की------

एक किरदार ऐसा भी.......

मै जिस शख्स की शख्सियत पर तब्सरा करने जा रहा हूँ उस शख्स के नाम मुझे अक्षर ज्ञान कराने का ओहदा शुमार है यानि मेरी याददाश्त के लिहाज़ से वे मेरे पहले अध्यापक/गुरु थें। सरकारी स्कूल की लचर पढाई के बीच गांव में मॉटेसरी स्कूल खोलने वालें मेरे जीवन के पहले गुरु मास्टर प्रताप सिंह। आज वो इस दूनिया में नही है लेकिन उनकी शख्सियत की विविधता आज भी मेरे जेहन मे बसी हुई है। एक औसत किसान परिवार में जन्म लेने वाले मा.प्रताप सिंह खुद भी ज्यादा शिक्षित नही थे बल्कि जब उन्होने स्कूल खोला तो उन पर गांव के लोगो ने खुब तंज कसे थे कि खुद आठवी पास है यह क्या बच्चों को पढायेगा लेकिन उन्होने वह बात झूठी सिद्ध करके दिखाई वो गजब के मास्टर थे गणित में उनकी विशेष पकड थी और उनका सुलेख मुझे आज भी याद है। चौपाल में उन्होने स्कूल खोला था जिसमे मैने पढना शुरु किया उन्होने हमें अनुशासन और नैतिकता का पाठ पढाया वो खुद भी एक फनकार थे इसलिए अपने रचनात्मक कौशल से उन्होने न जाने कितने पत्थरों को भी तराशा।  मै समझ नही पा रहा हूँ कि उनकी शख्सियत को कहाँ से ब्याँ करना शुरु करूँ वो एक गायक थे,रंगमंच के मंझे हुए कलाकार थे, हारमोनियम से लेकर बैंजो तक गजब की बजाया करते थे।
सुबह गांव के मन्दिर मे 4 बजे जाकर जागरण का शंख बजाना उनकी नियमित दिनचर्या थी उन्होने खुद की कीर्तन/जागरण पार्टी बनाई हुई थी जो न केवल गांव मे बल्कि आसपास के जिलों में भी जगराते वगैरह के लिए जाया करती थी।
मा.प्रताप सिंह मूलत: तो एक रचनाधर्मी व्यक्ति थे और उनकी प्रयोगधर्मिता उनको विशिष्ट बनाती थी अन्यथा एक खुद आंठवी पास व्यक्ति ( बाद मे हाईस्कूल किया था) का गांव मे मॉटेसरी स्कूल खोलना और उसको शिखर तक ले जाना अपने आप मे एक विस्मित करने वाली बाती है तमाम आलोचनाओं के बीच उनका अपने काम और लक्ष्य के प्रति अनुराग निसन्देह गजब का था उन्होने ने जो भी काम किया डूब कर किया और अंत मे एक त्रासद कथा के अंत की तरह इस दूनिया को अलविदा कह गए। मा.प्रताप सिंह ने अपनी उद्यमशीलता की वजह से अपने औसत से नीचे और गरीबी मे जीवन जीने वाले परिवार को एक सम्मानजनक और आर्थिक रुप से सम्पन्न स्थिति तक पहूंचाया उन्होने केवल अपने ही बारें मे नही सोचा बल्कि अपने भाईयों और उनके बच्चों को समान रुप से आगे बढने के अवसर उपलब्ध करायें। अपने अकेले दम पर गांव और आसपास के क्षेत्र का सबसे सफल स्कूल चलाकर दिखाया। गांव की रामलीला में उनके द्वारा अभिनीत रावण का किरदार आज भी कालजयी है उनसे बढिया रावण का किरदार आज तक गांव मे कोई नही निभा पाया है और रामलीला ही नही नाटक कसम में उनके द्वारा निभाया गया  डाकू का किरदार भी हमारे क्षेत्र में उनके अभिनय की व्यापक रेंज का जीवंत उदाहरण बना रहा है।
एक अभिनेता,गायक,अध्यापक,वादक ये कई किरदार है जो मा.प्रताप सिंह मे समायें हुए थे उनकी आवाज़ का कडकपन हम जैसे छात्रों को अनुशासित रखने के लिए पर्याप्त होता था गांव के प्राईमरी स्कूल के छात्रों के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना उनकी जिजिविषा और रचनाधर्मिता का उदाहरण था।
अब अंत में उनकी त्रासदी का जिक्र कर रहा हूँ आप यकीन नही करेंगे कि जिन्दगी कैसी यूटर्न ले लेती है कैसे एक धार्मिक व्यक्ति टुकडा-टुकडा बिखरता है... अभी तक जिन-जिन विविधताओं का जिक्र मैने अपने अध्यापक मा.प्रताप सिंह के बारें किया उनके ठीक उलट एक ऐसा हिस्सा मास्टरी जी की जिन्दगी के साथ जुड गया जिसको सुनकर और सोचकर मुझे आजतक भी बडा खेद होता है कई साल स्कूल चलाने के बाद उन्होने स्कूल बंद कर दिया उसके बाद अपनी खेती-बाडी मे लग गए धीरे-धीरे उनकी फनकारी भी हाशिए पर चली गई भजन कीर्तन मंडली चलाने वाला मास्टर चौबीस घंटे शराब के नशे मे धुत्त रहने लगा वजह क्या रही है इसकी मुझे भी ज्यादा जानकारी नही है लेकिन जिस शख्स से हमने नैतिकता और अच्छी-बुरी चीज़ की परख सीखी वह खुद शराब के नशे में बर्बाद हो रहा था और सबसे त्रासद बात उनकी मौत से जुडी हुई है एक दिन शराब के नशे में पडौस के गांव में वो अपने मित्र के पास गए हुए थे वहाँ जमकर शराब पी और रात में छत पर सोने चले गए रात में संभवत: उन्हे प्यास लगी और पानी पीने के लिए अंधेरे में ही छत पर चल दिए और सीधे छत से नीचे सडक पर गिर पडे बस....वही गिरकर उनकी मौत हो गई।
मेरे गांव का एक फनकार,कलाकार और मेरा पहला गुरु ऐसी गुममान और अजीब मौत पर सवार हो इस मतलबी दूनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गया। उस शख्स नें अपने परिवार को बनाया हमारे जैसे बहुत से बच्चों को इस काबिल बनाया कि हम कुछ बन सके गांव में सांस्कृतिक रुप से सीमित संसाधनों के बीच अपनी रचनाधर्मिता को पनपने के लिए अथाह प्रयास किये और उसमें भी सफल हो कर दिखाया और अंत में एक दुखद त्रासद कथा के अंत की तरह मेरे जैसे पूर्व छात्र  के दिल औ दिमाग में यह सवाल सवाल छोड गया कि आखिर ऐसी क्या वजह थी कि जो शख्स शिखर से शून्य की तरफ इतनी गति से बढा जिसकी किसी को उम्मीद नही थी....शायद जिन्दगी कोई इसलिए ही बेवफा कहा गया है ऐसे लोग आने वाली पीढी को नही मिलेंगे शायद अब ऐसे लोग पैदा ही नही होते है अपने समय के एक ऐसे बहुआयामी गुरु से मै दीक्षित हुआ यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है।

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