चलो बहुत हुआ मेल-मिलाप,शेर औ' शायरी,राजनीति,आपबीती,जगबीती,गा लबजाई अब उठाते है झोला और निकलते है किसी और दर पर अलख जगाने.... !
अलख निरंजन...!!!
माया मोह ठगनी बडी रे....यहाँ कौन अपना है और पराया भी कौन है सब अपने अधूरेपन को पूरा करने की तलाश में है लेकिन जिसको किसी शायर ने कहा है अधूरेपन का मसला जिन्दगी भर हल नही होता,कहीं आंखे नही होती कहीं काजल नही होता...!
दिल का ऊब जाना बेवक्त शाम को घर से निकल जाना और हंसते-हंसते आंखो से पानी छलक जाने का कारण शायद ही कभी बताया जा सकता हो...। निशब्द...यात्रा जारी है..।
अलख निरंजन...!!!
माया मोह ठगनी बडी रे....यहाँ कौन अपना है और पराया भी कौन है सब अपने अधूरेपन को पूरा करने की तलाश में है लेकिन जिसको किसी शायर ने कहा है अधूरेपन का मसला जिन्दगी भर हल नही होता,कहीं आंखे नही होती कहीं काजल नही होता...!
दिल का ऊब जाना बेवक्त शाम को घर से निकल जाना और हंसते-हंसते आंखो से पानी छलक जाने का कारण शायद ही कभी बताया जा सकता हो...। निशब्द...यात्रा जारी है..।
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