Monday, October 28, 2013

परीक्षा

इन दिनों से बडे बेटे राहुल के मासिक टेस्ट चल रहे है वो कक्षा 2 मे पढता है। उसके टेस्ट की तैयारी को लेकर पत्नि खासे तनाव और दबाव मे रहती है मै देखता हूँ उसको पढाने-रटाने के लिए रात-दिन एक किए है कई बार मुझे भी ताने देती है कि एम.ए. बी.ए. के बच्चों को तो पढाते हो कभी खुद के बच्चे को भी पढा लिया करो जिस-जिस सबजेक्ट में उसको कमजोर नम्बर मिलते है उस-उस सबजेक्ट की पाठ्य पुस्तक कई बार मेरे सामने लाकर पटक देती है मै साक्षी भाव से देखता रहता हूँ बच्चा जब स्कूल से आता है आते ही उसके कपडे बदलने के उपक्रम के साथ-साथ आज टेस्ट में क्या पूछा? तुमने क्या लिखा? कैसे लिखा? आदि सवालों का भी सिलसिला चलता रहता है कई बार उसको क्रोधित हो बालक को चपत लगाते भी देखता हूँ।
यह सब हर महीने का क्रम है मुझे अपने स्कूल के दिन याद आ जाते है जहाँ हम नितांत ही खुद पर निर्भर थे न गांव में हमे ट्यूशन मिलता था और न ही हमारी मम्मी हमे पढाती थी मेरे मम्मी को तो चूल्हें में फूंकनी से फूंक मारने से ही फुरसत कब मिलती थी उसे कुनबे का पेट पालना होता था आज तक मेरी मम्मी को यह नही पता कि मैने किसी विषय में पढाई की है, मैने कौन-कौन सी डिग्रियां हासिल की और मै विश्वविद्यालय मे कौन सा विषय पढाता हूँ...यही हालत पिताजी की है उन्होने कभी नही देखा मेरा रिपोर्ट कार्ड न कोई सलाह-मशविरा की क्या पढना है,कहाँ पढना है बस वो अपनी जमीदारी में मस्त रहें है। आज का वक्त कितना बदल गया है अब मम्मी को भी बच्चे के साथ साथ एक एक क्लास पास करते हुए आगे बढना होता है जितनी चुनौति बच्चे के समक्ष होती है ठीक उतना ही तनाव घर पर उसकी मम्मी भी झेल रही होती है। आधुनिक शिक्षा दर्शन पता नही कैसा है जहाँ इंसान को बचपन ही एक मारकाट वाली प्रतिस्पर्धा में धकेल दिया जाता है जहाँ उसे हमेशा कुछ न कुछ एचीव करना है भले ही इस चक्कर में बहुत सी उम्र की बुनियादी चीजे पीछे छूट जाएं जैसे बचपन को स्कूल को खा रहा है और पेरेंटस बच्चे की जान लेने पर उतारु है। एक प्रकार से देखा जाए तो हम सौभाग्यशाली थे भले ही हम प्राईमरी पाठशाल में पढे हो लेकिन हमारी मम्मी हमारी पढाई की वजह से कभी टैंशन में नही आई और हम भी गिरते-पडते-संभलतें एम.ए.पीएचडी तक की पढाई भी कर गए परफारमेंस का दबाव झेलती नई नस्ल का तो भगवान ही मालिक है।

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