Sunday, October 20, 2013

कभी आस्तिक कभी नास्तिक


कभी आस्तिक कभी नास्तिक

बचपन में जीवन की समस्याओं से लडने के लिए भगवान से बडा कोई सहारा नही होता है यह सिखाया गया था मेरी दादी जी खुद नित्यकर्म पूजा प्रकाश मे जीने वाली महिला रही है आज भी है प्रतिदिन घर के मन्दिर के मौजुद सभी देवी-देवताओं के दुध,गंगाजल,दही,शहद पंचामृत आदि से स्नान के बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ और उसके उपरांत हवन करना उनकी पिछले पचास सालों की जीवनशैली का हिस्सा बना हुआ है। हमने जैसे होश सम्भाला उन्होने धार्मिक संस्कार के रुप में मेरे हाथ मे तुलसी की माला और दुर्गा सप्तशती की पुस्तक थमा दी थी वैसे तो अमूमन में किसान परिवारों में घर पर पुरुष लोग धार्मिक क्रियाकलापों से विलग ही रहते है लेकिन मेरी दादी जी 28 वर्ष की उम्र से वैधव्य भोगा है इसलिए उनके लिए सबसे बडा हारे का सहारा भगवान ही था उन्होने आजीवन संघर्ष किया आज भी कर रही है उन पर अलग से लिखूंगा किसी दिन। मेरे लिए सुबह स्नान के बाद ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाए विच्चै नम: इस बीज मंत्र की एक माला जपनी और उसके बाद दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अनिवार्य था इसके बाद ही मै नाश्ता करता था आप शायद यकीन नही करेंगे मै बीए तक ऐसे ही धार्मिक और वेदपाठी बना रहा हर महीने पूर्णिमा का व्रत भी रखता था मेरे इस पांडित्य टाईप के जीवन के बारे में मेरे मित्र खुब मजाक किया करते थे लेकिन मै कोई प्रतिक्रिया न करते हुए इस भाव मे बना रहता है कि हे ! ईश्वर ये अज्ञानी है इनकी अपराध क्षमा करों ...मुझे बचपन का एक किस्सा याद है एक बार भैय्या दूज़ पर मै अपनी बुआ के यहाँ सहारनपुर गया वहाँ मैने सुबह उठते ही पूजा की इच्छा व्यक्त की उस वक्त मे 5 वी कक्षा मे पढता था मेरे इस कथन ने उनके पूरे परिवार मे कौतुहल और एक खास किस्म का मजाक का विषय बना दिया मै फिर भी डटा रहा और सबके बीच मे बैठकर पूजा की....।  
हमारे घर पर कर्मकांडी पंडितो द्वारा नियमित रुप पाठ वगैरह होते रहते थे उसमे भी संकल्प लेने वाला और प्रतिदिन पूजा अर्चना करने वाले घर के सदस्य के रुप में मै ही नामित रहा हूँ 10-12 दिन पाठ के बाद यज्ञ के बाद मुझे मुक्ति मिलती थी...वर्ष मे दोनों नवरात्री में मै व्रत रखता था...
और अब मै ना कोई पूजा करता हूँ ना कोई व्रत रखता हूँ ना कभी मन्दिर जाता हूँ इतवार और अन्य छूट्टी के दिन तो सुबह ही बिना कुल्ला-मंजन किए ही भोग लगा लेता हूँ धार्मिक कर्म सब काम पत्नि करती है। मेरे दादी जी के लिए भी मेरा यह परिमार्जित रुप कम आश्चर्य का विषय नही कई बार उन्होने मुझे नसीहत किया अब वो कुछ नही कहती है उन्हे लगता है कि शायद मै जो संघर्ष कर रहा हूँ उसकी एक वजह मेरा अधार्मिक होना भी है (वो मुझे नास्तिक नही मानती है) इसलिए रोजाना अपनी पूजा मे एक सुबह और एक शाम अतिरिक्त माला मेरे नाम से भी जपती है कि इस प्रार्थना के साथ हे ! प्रभु इस बच्चे के अपराध क्षमा करना यह अभी अज्ञानी है।
मै धार्मिक से लगभग नास्तिक कैसा बना इसका जिक्र किसी दूसरी पोस्ट में करुंगा....:)
ईश्वर मेरी मदद करें J

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