Sunday, October 20, 2013

गांव और मनोरंजन.....


गांव और मनोरंजन.....

मनोरंजन भी इंसान की बुनियादी जरुरतों मे से एक है शहर मे जहाँ मनोरंजन के पर्याप्त साधन मौजूद है और ये पहले से ही रहे है वहीं गांव में मनोरंजन के बेहद सीमित विकल्प मौजूद थे टीवी तो नाम मात्र का साधन था क्योंकि गांव मे बिजली ना के ही बराबर आती थी मेरी पीढी के लोगो को याद नही होगा कि उन्होने कभी शाम को गांव मे बिजली की रोशनी में खाना खाया हो हमारी शाम स्थाई रुप डीजल की डिब्बी (डिबरी) और लैम्प,लालटेन से ही रोशन रहती थी।
बात स्कूल से शुरु करता हूँ हम जिस चौपाल के स्कूल में पढते थे वहाँ कभी कभी साईकिल पर पोटली बांधे जादूगर आता था जैसे ही उसकी साईकिल स्कूल के बाहर रुकती हम बच्चों के चेहरों पर खुशी की लहर दौड जाती थी वह जादूगर स्कूल में हेडमास्टर साहब से अपना खेल दिखाने का निवेदन करता प्राय: मास्टर जी रेसिस के बाद  खेल दिखाने पर रजामंद हो जाते थे उस जादूगर के तमाशे के बाद स्कूल की छुट्टी हो जाती थी इस तरह से जादूगर आने का मतलब होता था कि आज स्कूल का हाफ डे होगा....यहाँ मै आपको बताता चलूँ कि गांव मे यह खेल तमाशा दिखाने वाला जादूगर शहर के “सरकार’’ टाईप का जादूगर नही होता था बल्कि वह वेशभूषा से वह हमारे ही बीच का भदेस खेतीहर मजदूर टाईप का शख्स होता था वो प्राय: तहमंद (लुंगी) पहनता था मुझे आज तक नही पता चला कि वो किस जगह के रहने वाले होते थे हालांकि उस समय उनके करतब देखकर मेरे जैसे हर बच्चे की तमन्ना उनका शागिर्द बनने की जरुर होती थी क्योंकि बंद मुठ्ठी से सिक्का गायब कर देना और एक से दो सिक्के बना देना उस वक्त बडा करतब लगता था शहर के बच्चें कभी उस तरह के जादूगर की कल्पना भी नही कर सकते है बल्कि उनके लिए यह यकीन करना भी मुश्किल होगा कि गांव में स्कूल मे ऐसे जादू का तमाशा दिखाया जाता था। उस जादूगर के पास के एक छोटी से लकडी की मूठ होती थी जिससे वह चमत्कार दिखाया करता था और एक कपडे का सांप होता था जिसको वह ‘ठेकेदार’ कहता था यानि बाहर से जादू के माध्यम से जो भी सामान आयेगा उसकी व्यवस्था ‘ठेकेदार’ करता था....जादूगर हम बच्चों के बीच से एक बच्चें को बुलाता था जो उसके तमाशे का हिस्सा बनता था वो इस खेल मे जादूगर का जमुरा बनता था जादूगर के सामने बैठने वाला बच्चा कुछ खास ही ढीट किस्म का होता था मतलब खिलदंडी स्वभाव का होता था कई बार बाहर के दर्शको मे से भी कोई जादूगर के सामने बैठ जाता था....मेरी तरह से बहुत से बच्चों की मां घर से मना करके भेजती थी कि जादूगर के सामने नही बैठना है कई बार हेडमास्टर साहब ही किसी मूंहफट किस्म के बच्चे को बैठने का आदेश दे देते थे ताकि खेल मे रोचकता बनी रहे उसके बाद खेल तमाशा शुरु होता था हालांकि बाद मे हमें पता चला कि उस बच्चे के कान में जादूगर पहले ही निवेदन फूंक देता था कि यह उसकी रोजी का सवाल है इसलिए जैसा वह कहे वैसे ही करता रहे....वो गांव की चौपाल में गजब का तमाशा होता था उसमे जादूगर के चुस्त जुमले चलते और हम सभी बच्चे उस खेल मे ऐसे बंध जाते थे कि पूछिए मत....मै अब एक जुमले का खुब प्रयोग करता हूँ जो मैने जादूगर से ही सीखा है जादूगर कहता था कि उसके पास हाथ की सफाई और नजरबंदी का खेल है.....मै भी कई बार कह देता हूँ कि मै कुछ नही करता केवल हाथ की सफाई और नजरबंदी का खेल करता हूँ।
गांव के लोगो की यह स्थाई मान्यता थी कि जादूगर के पास नजरबंदी की सिद्धि होती है मतलब वो दर्शको की नजर बांध देता है फिर वो जो चाहे दिखाना चाहे दर्शक वही देखते है ( विज्ञान के हिसाब से हिप्नोटिज्म)
तमाशा दिखाने वाले जादूगर के कुछ शाबर किस्म के मंत्र भी होते थे जो मुझे आधे अधूरे याद है जैसे वो अपना सिर हिलाता डुगडुगी बजाता और फिर जो से बोलता..”.गड-गड की खोपडी गड-गड मसान जहाँ सोती है खोपडी वही सोता है मसान”  इस औघड मंत्र का बडा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पडता था हमे वो जादूगर सच मे कोई सिद्ध व्यक्ति लगने लगता जो अलौकिक शक्तियों का स्वामी है...वो कई तरह के खेल दिखाता मसलन जमूरे के पिछवाडे को हिलाकर डब्बे मे सिक्को की झडी लगाना,जमुरे के कान से पैसे तोड कर दिखाना.... कई बार जमुरे का लिंग परिवर्तन करना ( राम जाने सच मे क्या होता होगा) जमूरे की हवा जरुर संट हो जाती थी जब वो अपनी जनेन्द्रियाँ चैक करता था....इसके अलावा टैपरिकार्ड मंगाना बिना बैटरी और बिजली के पांच गाने सुनवाना वो भी उसके मौखिक आदेश पर जब वह कहता गाना बजता और जब  वह कहता कि रुक जा गाना रुक जाता था हम सब बच्चे यह देखकर रोमांचित हो जाते थे इसके अलावा जमुरे की शादी के लिए कपडे मंगवाना कभी कभी रसगुल्ले भी खिलवा देता था...अक्सर सभी जादूगरों के पास यही करतब होते थे कुछेक ऐसे भी होते थे जो छूरे से अपने बच्चे की गर्दन कलम करने का करतब दिखाते थे परदे के नीचे बच्चे को लिटाकर उसकी गर्दन गेंद की तरह लुडका कर दिखाते और दर्शकों पर मानसिक दबाव बनाने के लिए कहते कि अगर आप चाहे तो खून भी निकाल कर दिखा सकता हूँ उस समय सभी दर्शक डरे सहमे होते थे और वो एकस्वर में मना कर देते कि नही नही भाई ऐसा मत करो.... इस खेल को दिखाने से पहले वह सभी दर्शको को पॉज़ भी कर देता था वह कहता था कि कोई भी अपने पैर की मिट्टी नही छोडेगा अगर किसी ने ऐसा किया तो उसका खेल बिगड जाएगा और उसके बच्चे की जान को खतरा हो जाएगा यह उसके तमाशे का आखिरी आईटम होता था उसे यह भय रहता था कि लोग चुपचाप खिसकना न शुरु कर दे इसलिए वह लोगो को रोके रखने के लिए यह सब कहता था खेल दिखाने के बाद   जादूगर कहता कि अब सब बच्चा लोग अपने घर जाओं और अनाज़,आटा,गुड,पैसा जो भी मिले लेकर आओं तभी वह अपने बच्चे को जिन्दा करेगा यह इस तमाशे का सबसे भावुक पल होता था इसके अलावा वह यह भी कहता था कि जो बच्चा ये सामान नही लायेगा उसको रात में भूत परेशान करेंगे और इस डर के मारे बच्चे अपने अपने घरो की तरफ सरपट दौड लगाते और अपनी सामर्थ्यानुसार आटा,गुड,आनाज़ लाकर जादूगर को देते थे....।
इसके बाद जादूगर हेडमास्टर साहब से अपनी डायरी में अपने खेल के बारे में अनुशंसा/प्रतिक्रिया लिखवाता था उसके बाद वह अपनी साईकिल उठाकर निकल लेता था और मेरे जैसे स्कूल के बच्चे उसे अपलक देखते रहते थे...जैसे मानो हमारे बीच से कोई सिद्ध पुरुष जा रहा हो।

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