Monday, October 28, 2013

सामाजिकता

सामजिक होना अपने आप मे एक बहुत बडा कौशल है। कुछ अपने दोस्तों को देखता हूँ वे इतने मिलनसार और सामाजिक किस्म के जीव है कि उन्हें सामाजिक रुप से मेल मिलाप मे रत्ती भर भी संकोच नही होता है वें गजब के मेजबान है। दोस्तों के यहाँ चाय से लेकर खाने तक की तारीफ करने में उनकी हाजिर जवाबी का जवाब नही होता है इधर मूंह में निवाला गया नही और उधर तारीफ की चासनी में लिपटे शब्द निकले शुरु हुए ऐसे हंसमुख और हाजिर जवाब् दोस्तों की वजह से हमारे जैसे मूकभावी लोगो की पत्नियों को भी आत्मगौरव को महसूस करने का अवसर मिलता है। एक हम है निपट एकांतप्रिय और दोस्तों की बच्चों और पत्नियों से गप्पे मारने के मामलें में नितांत संकोची मेरे सामने कई बार धर्म संकट तब होता है जब अच्छे खाने की तारीफ करने का अवसर आता है ऐसा नही है कि मेरे पास शब्दाभाव होता है लेकिन स्वाभाविक रुप से मूंह से वो बोल नही फूटते है जिससे सामने वाले को खुशी मिले....बच्चे तो मेरी चुप्पी और काया को देखकर ही मेरे करीब आने से डरते है। अब तो हालत यह है कि दोस्तों के सामने भी चुस्त जुमलेबाजी से परहेज करने लगा हूँ क्योंकि मेरी बातों से व्यंग्य का जायका आता है लम्बे समय तक ऐसी बहुत से दोस्तों को शिकायत रहने लगी थी।
खैर..सारांश यही है कि आदमी को सामाजिक,व्यवहार कुशल,हंसमुख और मिलनसार होना चाहिए न कि मेरे जैसा जो संकोची जीव जो मन की बात मन मे ही लिए बोझ तले दबा फिरता रहे दर ब दर...और सोचता रहे कि.... I am a good guest but bad host..

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