Monday, October 28, 2013

सेकुलर

बात मुद्दों से फिसल कर धर्म पर आ जाती है इसलिए देश मे सेकुलर होना गोया गाली बन गई है खुद मुझ पर भी छ्द्म धर्मनिरपेक्ष होने का आरोप है आप कट्टर रहें चाहे जिस भी विचारधारा से ताल्लुक रखे यही आज के दौर मे आपकी वैचारिक प्रतिबद्धता और प्रखरता के पैमाने बन गए है। यदि आप शांति सद्भाव और आपसी सोहार्द के साथ जीना चाहते है क्या तो आप छ्द्म है या फिर डरपोक। ऐसे मुश्किल दौर में कई बार बडी बैचेनी होती है कई बार न चाहते हुए भी अपने 'आर-पार' की लडाई का मूड बनाए मित्रों की हाँ मे हाँ मिलानी पडती है क्योंकि उनके लिए मेरे हिन्दू होने का सबसे बडा प्रमाण यही है कि मुस्लमानों से कितना आतंकित हूँ और फिर इसी डर से मुझे उस युद्ध के लिए तैयार रहना है जहाँ घृणा और वैमंष्य को जीने की बुनियादी जरुरत के रुप मे विकसित किया जा रहा है।
महावीर,बुद्ध और नानक के इस देश में शांति प्रिय लोगो के पीठ पर भगौडा लिखने के मुहर तैयार की जा रही है जिसे जब भी मौका मिलेगा वो आपके पीठ पर दाग देगा। अजीब आश्चर्य होता है जब हम विश्व गुरु होने का दम्भ भरते हुए पश्चिम को गर्व के साथ गरियाते है लेकिन 21 वी सदीं के भारत में आज भी धर्म के नाम पर जो खून खराबा होता है वो किसी एंगल से मुझे अपने देश पर गर्व करने की इजाजत देता है मुझे समझ नही आता है।
सियासत ने जो रवैया अख्तियार किया है वह भी कम डराने वाला नही है क्या सियासत का अंतिम लक्ष्य येनकेनप्रकारेण कुर्सी ही हासिल करना होता है विशुद्ध मानवीय सरोकारों की सियासत क्यों नही की जा सकती है चाहे सत्ता हो विपक्ष दोनों ही अपने स्वार्थो की राजनीति मे लिप्त है ऐसे में विकासशील देश का एक आम नागरिक जो रोजमर्रा की बीमारी,कर्जे और मुकदमों से जुझता हुआ खुद इतना थका हुआ है कि उसे राहत कहीं नजर नही आती है ऐसे में अपने देश में साम्प्रदायिक दंगे,अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ,बाबाओं की लंपटई उसे और हताशा मे ही भर रही है।

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