सभी लोग आडवाणी की नारजगी को प्रधानमंत्री पद के लिए उनका नाम न घोषित करने से जोड़ कर देख रहे है हो सकता है की यह भी एक वजह हो लेकिन मुझे लगता है आडवाणी जी जैसा वरिष्ट नेता महज़ ऐसे भावावेश में ऐसा कोई बड़ा निर्णय नही ले सकता है. आडवाणी भाजपा के उन नेताओं में शुमार हैं जिन्होंने इस पार्टी को खड़ा किया था ऐसे में पार्टी से इस्तीफ़ा देना कोई आसान काम नहीं रहा होगा. मुझे लगता है की उनकी मोदी से सैद्धांतिक दूरी और धीरे धीरे हाशिये पर खिसकते उनके वजूद भी एक वजह रही है यह वर्तमान राजनीति की बदलती दिशा का एक प्रभाव कहिये या वक्त के मजबूरी कि मोदी अब भाजपा की मजबूरी बन गए है और ऐसे में उन्हें अपने किसी बड़े नेता को खोने का गम भी ज्यादा दिन नही रहने वाला है यह भी तय है, दरअसल वर्तमान में सैद्धांतिंक रूप से राजनीति करने वालो का समय अब ज्यादा रहा भी नहीं है क्योंकि अब जनता किसी चमत्कारिक व्यक्तित्व की आस में हैं जो कांग्रेस के राज़ से मुक्ति दिला सके अब विचारो और सिद्धांतो की राजनीति गौण हो गयी है एक भारतीय नागरिक होने के नाते मैं इसको कोई शुभ संकेत के रुप में नहीं देख रहा हूँ...आप भले ही उत्सव मनाएं..मैं किसी को रोक भी नहीं रहा हूँ.
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