Monday, October 28, 2013

कबूलतनामा


अपने समकालीन कवि मित्रों की कविताएँ पढने के बाद अपनी कविताओं के ब्लॉग को देखता हूँ तो लगता है कि कवि होना बहुत बड़ी बात अपनी श्रेष्ट कविता भी एक भावुक नोट लगने लगती है सूक्ष्म संवेदनाओं के पारखी कवियों को पढकर अपनी तथाकथित कविताओं का शिल्प और सम्वेदना दोनों ही कमजोर लगने लगती है मै कतई हीनभावना का शिकार नही हूँ लेकिन कविता के मामले में अभी खुद प्रशिक्षु कहने की हालत में नही हूँ जबकि ब्लॉग पर छोटा ही सही मेरा भी एक पाठकवर्ग है। नीरज की एक उक्ति याद आती है मनुष्य होना भाग्य है और कवि होना सौभाग्य। ये ब्लॉग का लिंक हैं
www.shesh-fir.blogspot.in
आप यहाँ मेरी कथित कविताई का के दस्तावेज देख सकते हैं।
नोट:यह एक ईमानदार सी स्वीकारोक्ति है इसमें मेरी निराशा और अवसाद के दर्शन न तलाशें बड़ी मेहरबानी होगी।

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