सरकारी नौकरी की लालसा व्यक्ति की उद्यमशीलता को चाटती है और उसके अन्दर सामाजिक सरोकारों के प्रति उदासीनता उत्पन्न करती अंत: व्यक्ति अपनी जडो से कटता हुआ एक ऐसी दूनिया का हिस्सा बन जाता है जहाँ उसके लिए होने से बेहतर दिखना होता है। सरकारी नौकरी के पीछे छिपे सामाजिक स्वीकार्यता एवं आर्थिक सुरक्षा के भाव की भेंट न जाने कितने युवा सपने रोज चढ जाते है जो समाज के लिए कुछ नवीन एवं सकारात्मक आत्मनिर्भर मॉडल स्थापित करने मे न केवल समर्थ होते है बल्कि चमत्कार की हद कुछ भी कर सकते है बस वो हिम्मत नही जुटा पाते है जो सरकारी नौकरी की लालसा के चलते दबती-दबती आखिर में मृतप्राय: हो जाती है।
(एक सरकारी मुलाजिम बनने की दौड में हांफते शख्स का हलफमाना)
(एक सरकारी मुलाजिम बनने की दौड में हांफते शख्स का हलफमाना)
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