Sunday, October 20, 2013

एक किरदार ऐसा भी- 2


बातें गांव की----

एक किरदार ऐसा भी- 2

अपने गांव की जब भी पडताल करता हूँ तो कुछ चेहरे कुछ चरित्र ऐसे सामने आते है जिनका होना अपने वक्त में भले ही एक आम बात रही हो लेकिन उन किरदारों को महीन ढंग से देखने पर कुछ ऐसे अक्स उभरते कि मुझे लगता है ऐसे लोग पीढियों के लिए किसी नजीर से कम नही है और गांव के सामाजिक भूगोल में उनकी उपयोगिता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी कभी उनके दौर मे हुआ करती थी। देखने सुनने में ये लोग बेहद आम नजर आते है लेकिन इनके जीने का ढंग और समग्र व्यक्तित्व बहुत से अर्थो में अनूठा रहा है।
एक ऐसा ही किरदार मेरा गांव से ताल्लुक रखता है जिसका नाम था रोढा माली। रोढा माली वैसे तो कोई खास पढा नही लिखा था लेकिन गांव के सामाजिक तंत्र में उसकी उपस्थिति बहुफलकीय किस्म की थी वह गांव के सामाजिक जीवन में सार्वजनिक आयोजनों और निजी आयोजनों की एक महत्वपूर्ण कडी थी। गांव में हर साल आयोजित होने वाली रामलीला में रोढा माली विदूषक/नकलिया/ मसखरे की भूमिका निभाया करता था उसके अभिनय में इतनी नैसर्गिकता थी कि वह गांव देहात के आम दर्शकों को हंसा-हंसा कर लोट-पोट कर देता था...रामलीला में कई रोल रोढा माली निभाता था वह एक एक्स्ट्रा आर्डनरी एक्टर था  जब भी कोई रोल करने से कोई अभिनेता मना कर देता तब वह रोल रोढा माली को दिया जाता था....गांव में बिना किसी प्रशिक्षण के उसका अभिनय इतना गजब का होता था कि गांव की रामलीला मे चार चांद लग जाते थे।
रोढा माली की पत्नि का निधन युवावस्था में ही हो गया था उसने खुद अपने दो बेटों को पाला और शायद अकेले होने की मजबूरी ने ही रोढा माली के अन्दर की पाक कला को पनपने का मौका दिया मजबूरी जब शौक बन जाती है तब उसका भी निखार अलग ही होता है रोढा माली को खुद रोटी बनाते मैने देखा है। गांव के छिटपुट आयोजन मसलन कथा,भंडारा,जन्मदिन,कन्दूरी आदि में हलवा और पूरी बनाने का काम रोढा माली ही कर लेता था इसके लिए गांव मे बाहर से हलवाई मंगाने की जरुरत नही होती थी ऐसा भी नही है कि वह पेशे से हलवाई था वह तो बस आपसी भाईचारे में लोगो के सुख-दुख में चूल्हा संभाल लेता था न ही उसका कोई फिक्स रेट था कि वो तय करके किसी के यहाँ पूरी हलवा सब्जी बनाने जाता हो जिसने अपनी खुशी से जो उसे दे दिया उसने ले लिए कई बार तो वह सारा दिन भट्टी पर बैठा रहता और शाम को अपने और बच्चों के लिए केवल भोजन लेकर घर वापिस आ जाता है यह उसकी जीवनशैली का हिस्सा था ऐसा नही था कि वह बेगार करके असंतोषी जीवन जी रहा था। गांव के लोग भी उसका खुब ख्याल रखते थे वो हमारे गांव का एक कौशलयुक्त कारीगर था जो अमीर-गरीब का भेद किए बिना सबके लिए उपलब्ध रहता था। गांव में लडकी की शादी में जब बाहर से हलवाई आते तब भी रोढा माली घर वालों की तरफ से एक एक्सपर्ट के रुप में जरुर रहता था खासकर हलवे के मामलें में उसका अन्दाज़ा और अनुमान बेहद सटीक किस्म का होता था वह विजिलेंसी करता था ताकि बाहर से आयें हलवाईयों  कोई भी सामान बर्बाद न कर सके।
रोढा माली का सेंस ऑफ ह्यूमर भी गजब का था वो जब कढाई भट्टी पर चढा देता था उसके बाद उसकी किस्सागोई चलती उसके कुछ साथी भी आ जाते थे और फिर एक खुशनुमा माहौल मे बतकही के बीच खाना-पकाना चलता था।
एक औसत किस्म की जिन्दगी जीते हुए भी मैने कभी रोढा माली को अवसाद या शिकायत करते नही देखा था शायद वो संतुष्टि का जीवन जीना जानता था वो लोकप्रिय और सबके लिए सहज रुप से उपलब्ध था।
गांव के पुरुष सत्तात्मक समाज़ मे रोढा माली एक सेतु के रुप में उपयोगी था मसलन मुहल्ले की महिलाओं में उसकी बहुत अधिक विश्वसनीयता थी किसी महिला को चुपचाप (पति से छिपकर) यदि घी वगैरह बेचना होता था तो वो रोढा माली की मदद लेती थी और महज़ घी ही नही बेचना बल्कि अपनी बेटी के पास कुछ सामान भिजवाना हो तो भी वह रोढा माली की ही मदद लेती थी इसलिए गांव मे ही गांव की रिश्तेदारियों में भी रोढा माली की आवाजाही और सम्मान बना रहता था।
रोढा माली युवा ही विधुर हो गया था लेकिन उसका सम्पूर्ण जीवन निष्कलंक किस्म का रहा मजाल कि कभी किसी ने उसके चरित्र के बारें में कोई उलजलूल किस्म की बात सुनी हो जबकि उसकी उठ-बैठ गांव की महिलाओं में भी खुब होती रहती थी। गांव की ही भाषा मे कहूँ तो वह लंगोट का पक्का आदमी था। 
कुल मिलाकर रोढा माली एक जिन्दादिल इंसान और ऊंच-नीच अमीर-गरीब से परे सबकी जरुरत मे काम आने वाला हमारे गांव का एक कुशल पाक शास्त्री था जिसने एक तरफ तो अपनी कला से लोगो को स्वादिष्ट भोजन खिलाया वहीं अपने अदभुत अभिनय से लोगो को खूब हंसाया भी...।
आज की आपाधापी भरी जिन्दगी में जब कोई बिना स्वार्थ के किसी से बात तक नही करता है ऐसे मे रोढा माली जैसे इंसान का अपने गांव में होना भर गर्व से भर देता है आज मै जब भी गांव के किसी छोटे-मोटे आयोजन में बाहर से आये हलवाई को आते देखता हूँ तब मुझे अपने गांव का रोढा माली बेहद याद आता है। मै फिर से यही कहूंगा अब ऐसे इंसान पैदा होने बंद हो गए है।

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