Sunday, October 20, 2013

वसीयत

वो खत आज पोस्ट कर दिए जिन पर पतें नही लिखे थे इससे पहले वो यादों की तरह बैरंग लौट आयें मुझे अपना पता बदलना होगा फिर उनके बोझ तले मुहल्लें का डाकिया अभिशप्त जिन्दगी का ईनाम माँगता अगली दीवाली तक मेरे नए पते लिए मुझे ढूंडता हुआ आ धमकेगा और मैं साफ़ मुकर जाऊंगा कि मैने होश में ऐसे कोई खत लिखे ही नही यही मेरी वसीयत है।

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