Monday, October 28, 2013

ब्रांडिंग

मुझे अपनी ब्रांडिंग करनी आज तक नही आई मैं इसको इसको किसी कमी या खूबी के संदर्भ में नही कह रहा हूँ लेकिन फेसबुक पर देखता हूँ की लोग बाग़ येन केन प्रकारेण अपनी ब्रांडिंग में लगे रहते है अपनी फितरत तो यही रही की जो अपनी जेब में है उसको भी खोटा ही बताया जाएँ क्योंकि अभी बहुत कुछ सीखना और जानना बाकी है पिछले ६ साल से दो ब्लॉग लगभग नियमित रूप से लिख रहा हूँ जिसमे एक कविताओं का हैं और एक ऑनलाइन डायरी टाइप का है लेकिन मुश्किल से ही कभी कभार अपने ब्लॉग के लिंक यहाँ फेसबुक पर शेयर किये होंगे जो लोग मेरा लिखा नियमित पढ़ते हैं उनकी भी यही शिकायत हैं की मै अपने लिखे हुए का ठीक से प्रचार नहीं कर पा रहा हूँ एकाध मित्रों की सलाह थी की मुझे पत्रिकाओं में भी छपना चाहिए तभी दायरा बढेगा और पहचान भी बढ़ेगी लेकिन मेरे दिल में कभी किसी पत्रिका में कवितायेँ भेजने का ख्याल ही नहीं आता है कभी. फेसबुक की मायावी दुनिया कभी कभी उकसाती भी है लेकिन फिर सोचता हूँ अभी ऐसा लिखा ही क्या है जो उसकी डुग डुगी बजायी जाये फिर खुद को उस कहावत के जरिये बहला लेता हूँ की सूरज जब निकलता है तब सबको दिखाई देता है उसको बताना थोड़े ही पड़ता है की मैं उग आया हूँ...

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