Monday, October 28, 2013

किसान व्यथा

अभी गांव में बात हुई किसान परिवार से ताल्लुक रखता हूँ इसलिए पहली बार फेसबुक पर किसान जीवन की व्यथा लिख रहा हूँ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिस क्षेत्र से मेरा ताल्लुक है गन्ना वहाँ की प्रमुख नकदी फसल है अमूमन नवम्बर में चीनी मिल शुरु हो जाते है और किसान तभी से गन्ने की सप्लाई करना शुरु कर देता है मेरे पिताजी भी गांव के प्रमुख गन्ना उत्पादको मे से एक है गन्ने की छिलाई के लिए किसानों को मजदूर करने पडते है फिर ट्रेक्टर ट्राली से भरे जाडे में पिटता हुआ डीजल फूंकता हुआ वह मिल मे गन्ना सप्लाई करता है मिल मालिकों की सरकार से गजब की सेंटिंग होती है इसलिए वे गन्ने के भुगतान में पूर्ण रुपेण तानाशाही चलाते है जिस महीने आपने अपने पैसे खर्च करके (यथा मजदूरी,डीजल) गन्ना मिल मे सप्लाई किया होता है उसके तीन महीने बाद एक-एक हफ्ते का पैमेंट बैंको के माध्यम से होता है जिसमे उसका आधा पैसा खाद के लोन और बैक के क्रेडिट कार्ड मे कट जाता है लेकिन किसान को मै दूनिया का महान आशावादी और सब्र संतोषी जीव समझता हूँ इसलिए वो बेचारा प्रतिरोध नही करता है बल्कि मरता खफता लगा रहता है सरकार और कारपोरेट की जुगलबंदी किसान का इस कदर शोषण करती है कि आप अन्दाज़ा भी नही लगा सकते है प्राईवेट चीनी मिल अपनी मर्जी से गन्ने का भुगतान करती है किसान अपना गन्ना उधार मिल को देता है और उसे उसका भुगतान किस्तों मे मिलता है वह भी बेहद मुश्किलों के बाद अभी आधा अगस्त बीत चुका है लेकिन हमने जो मार्च मे गन्ना सप्लाई किया था उसके पैमेंट का कुछ अता-पता नही है जबकि आय के लिहाज़ यह चौमासा किसान के लिए बेहद भारी होता है। हद है इस कृषि प्रधान देश की यहाँ किसान की सुनने वाला कोई नही है किसान मजदूरों की तरह संगठित भी नही है उत्तर प्रदेश के किसान हितेषी होने का दावा करने वाली समाजवादी पार्टी की सरकार है लेकिन शुगर मिल की तानाशाही पर कोई लगाम नही है चीनी मिल का मालिक चीनी नकद मे बेचता है और मुनाफा कमाता है और किसान अपने हाड तोड मेहनत की फसल उधार मे मिल मालिक को देता है लेकिन उसको बदले मे मिलती है तो जिल्लत की जिन्दगी इस मसले पर मेरा भोगा हुआ यथार्थ इतना अधिक है कि मै पूरा लेख लिख सकता हूँ। बैंक मैनेजर की गन्ना भुगतान को लेकर हेकडी,संग्रह अमीन का मानसिक शोषण,सहकारी बैंक मे लोन के नाम पर दलालो की लूट एक बेचारा किसान कहाँ कहाँ नही पिसता है लेकिन उसके सब्र का बांध नही टूटता है वो स्वाभिमान के साथ लम्बा और अंतहीन इंतजार करता है बस इसके अलावा और वह कर भी क्या सकता है।
शेष फिर

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