Monday, October 28, 2013

जुगलबंदी

जीवन को निश्चितंता और नियोजन की परिधि से निकाल कर अस्तित्व के भरोसे छोड देना बहुत बडी कलाकारी है। सलाह,नसीहतें समय के सापेक्ष काम करती है ऐसा लगता है कि आप कुछ चाहते है और दूसरी शक्तियां आपके चाहतो के विरुद्ध षडयंत्र मे लगी रहती है यह खेल जीत-हार का भी नही है यह खेल है अचानक से आए बदलावों की आहट को समझ पाने का,खुद को टटोलने का और चुनौतियों के खेल में खुद की शर्तों को क्षणिक रुप से भूलनें का ताकि सन्देश यह चला जाए आप स्वीकार भाव में है। स्वीकार भाव सकार और नकार दोनो से परे होता है जहाँ जीवन की उस लय मे खुद को बहने के लिए छोडना पडता है जहाँ बहुत सी चीजें आपकी पसंद और प्रकृति के ठीक विपरीत होती है ध्यान और आध्यात्म की भाषा मे यह अपने आप में साधना है जहाँ साधनों की जुगलबंदी में आपको वह राग आलापना पडता है जिसका रियाज़ आपने कभी नही किया होता है। है न ! जिन्दगी का अजीब खेल तमाशा.....

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