पढ़े हुए सिद्धांतो और निजी मान्यताओं के दर्शन के बीच भी कडवे यथार्थ की एक ऐसी समानांतर दूनिया बसती है जहां वक्त और हालात से उलझते इंसान को समझौतावादी बनना पड़ता है और दूनिया से अवसरवादी होने का तंज भी गाहे बगाहे सुनना पड़ता है। ऐसे लोगो को मै निजी तौर पर करप्ट नही मानता हूँ जिन्होंने विचार और थ्योरी के बीच कुछ मध्य मार्ग चुना क्योंकि कई बार वो खुद दांव पर लगे थे और बार उनके अपने।
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