Monday, October 28, 2013

दूनियादारी

पढ़े हुए सिद्धांतो और निजी मान्यताओं के दर्शन के बीच भी कडवे यथार्थ की एक ऐसी समानांतर दूनिया बसती है जहां वक्त और हालात से उलझते इंसान को समझौतावादी बनना पड़ता है और दूनिया से अवसरवादी होने का तंज भी गाहे बगाहे सुनना पड़ता है। ऐसे लोगो को मै निजी तौर पर करप्ट नही मानता हूँ जिन्होंने विचार और थ्योरी के बीच कुछ मध्य मार्ग चुना क्योंकि कई बार वो खुद दांव पर लगे थे और बार उनके अपने।

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