Thursday, November 27, 2014

यादें

कुछ खराशें जेहन में रफू हो गई थी कुछ पैबन्द लगाते हुए उंगली भी जख़्मी थी रफ्ता रफ्ता तुम इस तरह से जिंदगी के उजाले से गैर हाजिर होती गई कि मेरे पास हासिल में बस कुछ यादें बची थी। उन यादों का जिक्र करके मै खुद को ठीक कर रहा हूँ या बीमार यह भी मुझे मालूम नही है।
तुम्हारा यूं मिलकर बिछड़ना एक मुसलसल सदमा था जिसके लिए खुद के मुस्तकबिल को कोसने की भी इजाजत नही थी।क्योकि तुमसे मिलना ही खुद के बेशकीमती और खुशनसीब होने का सुबूत था।
सर्दी में पतझड़ आ सकता है इस बात का अगर अंदाजा होता तो पहले वक्त के मदरसें में बदलते मौसम को जीने का इल्म हासिल करके आता। तुम्हारी खुशबू इत्र के फाहे की तरह मेरे कान में बस गई थी आदतन खुद को कुरेदता कतर ब्योंत करता रहा मगर तुम्हारी दस्तक का इश्तेहार मेरे दिल पर चिपका हुआ था और मेरे दिल को लहुलुहान करने की केवल तुमको इजाजत थी।
दरअसल वक्त की चालाकियां तो देखिए तुम्हारा जाना इतना तयशुदा किस्म का था कि तुम्हारे आने का जश्न न हुआ उस वक्त मै सजदे में था कुछ लम्हों को गिरवी रख मांग रहा था तुम्हारा साथ और तुम कतरा कतरा फिसलती जा रही थी रेत की मानिंद।
ऐसे नाजुक लम्हों को करीने से सम्भालने के लिए मेरे पास केवल सच्चाई के लब थे और इसके अलावा तुम्हारी आँखों में झांकने का एक पाक हौसला था।
जज्बातों का लोबान जला था और तुम आफरीन थी मै किस हैसियत से तेरी पनाह में था ये बता पाना जरा मुश्किल होगा मगर मेरी रूह मेरे जिस्म से बाहर निकल मुझे ही देख रही थी उसने मेरे कान में बिछड़ने का हौसला फूंका और कहा आमीन।
अभी तक उसी एहसास में अटका पड़ा हूँ तुम्हारी हिदायतों और उम्मीदों को दुआ की शक्ल में तावीज बना कर गले में पहन लिया है मुश्किल और जज्बाती दौर में ये मेरे ईमान को मजबूती देगा इसका मुझे भरोसा है।
तुम्हारी जहीनियत पर कुछ अलफ़ाज़ खर्च करने की ना मेरी हैसियत है या ना मेरे पास वो इल्म है।तुम्हें खुदा ने अक्ल और दिल बराबर हैसियत का अता किया है तुम्हारी बातों में तजरबें का चासनी होती है और दिल के बेलौस जज्बात भी।इतनी ख़ूबसूरती से तुम नजदीकियों से बच निकलती हो कि तुम्हारी इस अदा पर रश्क होने लगता है।
बहरहाल तुमसे मिलना खुद से मिलने जैसा है इसलिए तुम अजनबी नही बन सकती मेरी नजरों में कभी शायद यही एक वजह है हम दोनों की जिंदगी में एक दुसरे के लिए कोई जगह न होते हुए भी किस्सागोई और बतकही के लिए जमीन खुद सूख जाती है जहां हम वक्त की आँखों में आँखे डाल सपनों की अदला बदली कर सकते है।
तुम्हारी गैर हाजिरी में इतना ही याद आ रहा है यह बुखार में बड़बड़ाने जैसा है तुम्हें याद करके राहत मिलती है बैचैनी नही इसलिए याद करता रहता हूँ तुम्हें अक्सर जबकि जानता हूँ तुम मुझे कभी याद नही करती उसके लिए जो चीज चाहिए बस वही तुम्हारे पास नही है कभी फुरसत ख़रीदो मुझ जैसे किसी खाली आदमी से फिर फुरसत से बात करते है।

'फुरसत यादें'

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