Wednesday, November 5, 2014

दिलचस्प बातें

उसकी मुझमें रुचि बहुत धीरे धीरे समाप्त हुई। मेरे बातों में इतना दोहराव था कि हर तीसरे दिन वही बात कहता जो परसों कह चुका होता। अंग्रेजी काव्य के समीक्षाशास्त्र की तरह मेरे पास  कहने के लिए एक ही 'सेंट्रल आईडिया' था गद्य और पद्य दोनों को उसके यहाँ गिरवी रख रोज़ मै उधार के जज्बातों से एक ऐसी मायावी दुनिया रचता जिसमें बहुतो को खुद का अक्श या खुद की कहानियाँ दिखने लग जाती मेरे लिखना एक आतिशी शीशा भर था जिसमें मेरी थोड़ी सी हाथ की सफाई और थोड़ी नजरबन्दी शामिल थी। उसने मेरे लिखे हुए में अवसाद को छान कर निकाल लिया था और उसे चाय की माफिक रोज घूट घूट पीती। उसका अभ्यास जीवन में तटस्थ रहने का अभ्यास था इसलिए वह पहले इतनी आश्वस्ती से भरी हुई थी कि वह मेरी बातों को केवल उपयोगितावादी दृष्टि से ग्रहण करेंगी उसके निहितार्थ को छोड़ मूल सम्वेदना को समझने की कोशिस करेगी मगर मेरे शब्दों के घेरे दिखने में जितने दूर नजर आते थे दरअसल वो उतनी दूर नही थे उनका आकार जरुर बड़ा था मगर वो धीरे धीरे रेंग कर उसकी तरफ बढ़ रहें थे और एक दिन उसने खुद को उन शब्द पाश में खुद को बंधा पाया।मेरी सबसे बड़ी कमजोरी और ताकत यही थी कि मेरी लत लग जाती थी और फिर आसानी से न छूटती थी।
ये बंधन उसकी अरुचि की शुरुवाती वजह समझी जा सकती है मगर दिलचस्पी कम होने की यही एकमात्र वजह नही थी। उसका मन विविधता अभिलाषी था और जीवन के उत्सव को जीना चाहता था उसकी छोटी छोटी बातों की इतनी बड़ी दुनिया थी कि वो रसाई में भी कविता का संसार रच लेती चाय और कॉफ़ी उसके पकते ख्यालों के गवाह थे दरअसल वो जटिलता से बचना चाहती थी वो तलाशती रोज आसमान में अपना एक छोटा टुकड़ा और उसमें अपने मनमुताबिक़ टांक देती सूरज चाँद सितारे उसके इसी छोटे आसमान से भस्म होने के लिए धूमकेतु की तरह रोज़ निकलता मै मगर कोई गुरुत्वाकर्षण मुझे खींच न पाता।
उसकी मुझे रूचि किस्तों में समाप्त हुई जैसे ई एम आई देते देते बैंक का कर्जा समाप्त हो जाता है एकदिन। कर्जा अदा करने और मुझमें अरुचि के बाद की मनस्थितियों में बहुत समानता थी। जब आप प्रवाह में होते है तो सामने वाली की अनिच्छा को सूंघ नही पातें क्योंकि तब आप सम्बन्धों के जुकाम में होते है मगर ज्यों ज्यों सूरज चढ़ा मेरी नाक अक्ल और दिल तीनों एक साथ खुल गए थे अब मै खुद की बातों में उसकी ऊब सूंघ पाता खुद के होने में उसका मानसिक बोझ समझ पाता और खुद के दिल में जमें उसकी बेरुखी के कोलस्ट्रोल को महसूस कर पाता था उसकी पुरानी अच्छी बातों को याद कर खुद का खून पतला करना मेरी एक मात्र ज्ञात औषधि बन गई थी।
उसकी दिलचस्पी का यूं बेमौत मर जाना मेरे लिए कोई सदमा नही था यह इतिहास हो दोहराये जाने का तयशुदा उपक्रम भर था मगर उसके अहसासों की कूटनीतिक द्विपक्षीय वार्ता मुझे अरसे तक याद रहेगी वहां केवल बात करने के लिए बात होती थी बात के जरिए कोई मसला हल होगा या रिश्तों की गर्मजोशी बढ़ेगी यह दोनों का ज्ञात भ्रम था।
कुछ रिश्तें शापित होते है अपने अपने हिस्से का अधूरापन ढ़ोने के लिए वो इस अरुचि के जरिए अपने हिस्से का अधूरापन ढों मुक्त हो गई और मेरी पीठ पर अभी तक उसकी बातों यादों की बोरी लदी है ये जिस्म उसी के बोझ में झुका है मै किसी सजदें में नही हूँ दोस्तों !

'पाश को यह भी लिखना चाहिए था सबसे बुरा होता है आत्मीय रिश्तों में दिलचस्पी का मर जाना'

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