Tuesday, November 4, 2014

अवसाद

मन का स्थिर अवसाद वाचिक परम्परा में बांटने से अपनी रूहानियत और सूफियत खो बैठता है ! फिर उसकी ऊर्जा से सृजन की सम्भावना क्षीण हो जाती है। फिक्रों में समझाइश का होना अवसाद की पवित्रता को निगल जाती है।
क्रोध की तरह अवसाद की ऊर्जा के सदुपयोग के लिए कभी कभी खुद को आरक्षित रखना एक मजबूरी बन जाती है। इस आरक्षण के लिए एकांत के जंगल में रोज अनशन चलता है आमरण अनशन नही क्रमिक अनशन। एक आन्दोलन खुद विरुद्ध लम्बे समय से मेरे मन में चल रहा है उसे किसी का समर्थन नही उपेक्षा चाहिए होता है इस अनशन का मांग पत्र ऐसा है कि खुद मुझे मेरी लिखावट समझ में नही आती है।

'अवसाद-प्रमाद-प्रसाद'

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