Tuesday, November 25, 2014

नालायक

हर परिस्थितियों में मै ही नायक रहूँ यह एक किस्म की ज्यादती है तुम्हारे साथ जबकि सच तो यह है कि कई दफा मै होता हूँ बेहद सतही या टुच्चा भी। मेरी बातों में कूट कूट कर भरी होती पुरुषोचित्त कूटनीतिकता।आधे सच आधे झूठ के झोल में तुम्हें उलझा मै तलाश लेता हूँ अपने लिए एक सुरक्षित कोना।
दरअसल खुद को नायक घोषित करने के लिए इतनी कलन्दरी करनी ही पड़ती है कि कह दूं यार तुम मुझे समझ नही पाई जबकि सच तो यह भी है जब मै ही खुद को आजतक नही समझ पाया तुम कैसे समझ सकती हो मुझे पूरा पूरा।
मेरे कथ्य का अंत मुझे संघर्षरत योद्धा सिद्ध करता है और तुम्हें नासमझ मगर समझने वाले फिर भी समझ ही जाते है कि यहां कौन हार या कौन जीत रहा है।
ऐसा नही है कि तुम्हें कभी कमतर आंका हो मैंने परन्तु मै न जाने किस भय या चालाकी से खुद को सुरक्षित कर तुम्हें टांग देता हूँ समस्त अपेक्षाओं की कमान पर।
और कल जब मैंने खुद को देखा आईने में तो मेरी आँखे पूरी न खुल पाई। अधमिची आँखों से खुद को देखते मैंने धुंधलकें में देखा तुम मेरी पीठ पर जमी वक्त की गर्द साफ़ कर रही हूँ उसके बाद मै पूरे डेढ़ दिन तक चुप रहा अभी अभी खुद से बात हुई तो पता चला कि न
मै तुम्हारे किसी भी लायक नही हूँ।
अपराधबोध ग्लानि अस्पष्टता की धुंध में लिपटा एक सर्दी का सवेरा हूँ मै ज्यों ज्यों सूरज आँख मिलाएगा मै खो जाऊँगा ताप की भांप के बीच।
फिर तुम पिछली सर्दी की तरह याद ही कर सकोगी मुझे मगर ठीक ठीक बता न पाओगी कि ये साल उस साल से अलग कैसे है।
आज तुम्हें नायिका घोषित कर मै हमेशा के लिए नष्ट करता हूँ अपना नायकत्व शायद यही एक तरीका बचा है तुम्हें समझने का।अलबत्ता तो इसके बाद तुम्हारी खुद ही मुझमें रूचि नही बचेगी और यदि बच गई तो समझ लेना कि तुम सामान्य कतई नही हो और सामान्य न होने का अर्थ आसामान्य होना नही होता है इसका क्या अर्थ होता ये तलाशना होगा तुम्हें खुद यदि इस पर मैंने व्याख्या दे दी तो अनन्तिम रूप से मै ही नायक बच जाऊँगा जो मै बिलकुल नही चाहता हूँ।

'नायक या नालायक'

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