Wednesday, November 26, 2014

गीता बीता

एकाधिकार का भी अपना आकर्षण था।यह कुछ कुछ जिद के जैसा था कि मै तुम्हें केवल मुझ तक ही सीमित देखना चाहता था। तुम एक सरस नदी थी जिसकी तट से मित्रता बेहद कम क्षणों की थी तुम्हें बहना था तृप्ति की ओर। यही एक वजह थी कि धीरे धीरे मैनें खुद को तुम्हारे जीवन में ठीक उतना ही अप्रासंगिक पाया जितना तुम्हारे जीवन में सर्राफ का दिया तुम्हारा छोटा बटुआ हो चला था।
तुम्हें बंटते हुए देख मुझे बुरा नही लगता था मगर हाँ मुझे खुशी नही होती है मुझे लगता था तुम मेरी खोज हो तुम्हें मैंने कतरा कतरा रोज़ तराशा है तब जाकर तुम्हारी बातें गुड की डली बनने लगी थी। जब तुम मुझे मिली तब शायद तुम्हारी खुद से सतही मुलाकातें थी इसलिए तुम्हें नही पता था कि तुम क्या हो और जब पता चला तो तुम्हें कोई विस्मय नही हुआ इस बात का मुझे आजतक विस्मय है।
मै चाहता था तुम दीवान ए ख़ास में किसी इबारत की तरह रहो मगर शायद वहां की तन्हाई तुम्हें दीवान ए आम में ले लाई है। ठीक है इसमें भी कोई बुराई नही है बस अब धीरे धीरे तुम्हारा आकर्षण एक धीमी मौत मर रहा है मेरे अंदर ।न जानें क्यों मै खुद को तुम्हारा सबसे ख़ास और बेहतरीन कद्रदान मानता था अब तुम महफ़िलों की जान हो हर कोई तुमसे मिलना जुड़ना बतियाना चाहता है एक दोस्त के नाते तुम्हारी जन स्वीकार्यता पर मुझे खुशी और फख्र दोनों है मगर शायद मै खुद को तुम्हारा दोस्त से ज्यादा कुछ समझने लगा था। अब इसका मतलब यह भी न निकाला जाए कि तुमसे प्रेम करने लगा था मै और ये एकाधिकार की पीड़ा प्रेम की पीड़ा है।नही मैंने तुमसे प्रेम नही किया कभी मगर तुम मेरे लिए एक बेशकीमती चीज थी जिसे मै सदैव अपने हृदय के पास रखना चाहता था तुम्हें खोना या बांटना तो कभी सपनें में भी नही सोचा होगा।
बहरहाल परिवर्तन संसार का नियम है गीता में यह सूत्र लिखने के लिए कृष्ण आदि को धन्यवाद कहने का मन है इसी के सहारे मै तुम्हें दूर जाते देख पा रहा हूँ मेरे चेहरे पर मुस्कान है और आँखों में आंसू । मै खुश हूँ या दुःखी ये बता पाना जरा मुश्किल होगा इसे बताने के लिए मैंने कई बार गीता पढ़ी मगर इस मनस्थिति को जोड़ने वाली कोई बात वहां नही मिली सिवाय इसके कि परिवर्तन संसार का नियम है।कल मै भी बदल जाऊं तो कम से कम तुम्हें कोई हैरत तो न होगी वैसे सच तो यह है मै बदल रहा हूँ आज से और अभी से क्योंकि जीने के लिए यह जरूरी है और जीना क्यों जरूरी है ये बात कम से कम तुम सबसे बेहतर जानती हो।

'जो बीता वही गीता '

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