Tuesday, November 4, 2014

अधूरे राग

इंतजार रिसता हुआ धीमी गति से रीत रहा था। वो रोज संकल्पों और रोज विकल्पों की शतरंजी चाल के दिन थे वहां सब कुछ इतना अनिश्चित था कि खुद को खारिज़ करके मन को सांत्वना देनी पड़ती थी। स्पर्शों की नमी से खत की स्याही बहने लगी थी और लिखावट कोई लुप्त होती लिपि सी दिखने लगी थी अब बिना चश्में के खुद का पता न समझ पाता था और न ही यह अनुमान लगा पाता था कि ये खत मुझे लिखे गए थे। तुम आदतन पिनकोड गलत लिखती थी बस एक यही पहचान बची थी तुम्हारे लिखे खत पहचानने की।गणित की संख्याओं ने खुद को मन की गीली भावनाओं से अलग रखा इसलिए पूरे खत पर केवल उन्ही का वजूद बचा था।
तुम्हारी बातों को महफूज़ रखने के लिए मन का तापमान शून्य से नीचे माइनस में रखना पड़ता था तुम्हारी यादें मेरे लिए दशमलव कब से बनी ठीक से मुझे भी याद नही है।
आर्चीज़ की गैलरी जाने का उत्साह और वहां का कन्फ्यूजन अभी तक याद है तब बजट छोटा और दिल बड़ा हुआ करता था कार्डस पर लिखी अंग्रेजी कोट्स को पढ़ते पढ़ते लगने लगता था तुम मन की अनकही बात इनकें जरिए समझ जाओगी मेरे लिए वो चंद हरफ नही थे बल्कि वो विश्वास प्यार और समपर्ण के शपथ पत्र थे जिनके जरिए तुम्हारी जिन्दगी में दाखिल होना चाहता था मैं।
अफ़सोस की शक्ल इतनी मिलती जुलती थी कि इस बार खुद के कमतर होने का एहसास नही हुआ जिन्दगी के वरक सीधे करते करते तुम्हारी ऊंगलियों पर बेहद महीन गर्द चढ़ी थी फ़िक्र भरी रातों में खुद में सिमटकर कुतरे नाखुन अब क्षितिज से खूबसूरत नही दिखते थे उनकी बेतरतीब कतर ब्योंत ने उनको न केवल खुरदुरा कर दिया था बल्कि वो टूटने बिखरने भी लगे थे।
पतझड़ में तुम्हारे गुनगुनाए गीत दरख्तों के लिए मरहम से थे खुद को एक दरख्त में तब्दील होते हुए देखा तो मैं अपने कान तुम्हारे मन के पास छोड़ आया हूँ क्योंकि तुम्हारा गुनगुनाना मन ही मन प्रार्थना करने जैसा है। तुम्हारे भोर के आंसूओं से मन की निर्जन मूर्ति का लगभग रोज़ अखंड रुद्राभिषेक होता है तीन हिस्सों में बटा तुम्हारा मन बेल पत्र सा अर्घ्य देता है।
बूँद बूँद रिसता एक दिन रीत जाऊँगा बीत जाऊँगा तुम्हारे जीवन से।भोर के स्वप्न के जैसा कभी नींद और ख़्वाब के बीच तो कभी कल्पना और हकीकत के बीच अटके एक आवारा ख्याल सा है मेरा होना।
इस एकालाप में वक्त की खराश का रियाज़ शामिल है इसलिए न सुर सधते है न लय और न ताल ये बिन तानपुरे का अधुरी बैचेनियों का राग है जिसे हर सुबह तुम्हें सुनाता हूँ आरती की शक्ल में ताकि तुम्हें यकीन हो मेरे तुम्हारें बीच में ईश्वर एक मजबूत साक्षी है।

'अधूरे राग'


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