Saturday, November 22, 2014

बीज

कुछ बीज हवा खाद पानी नमी के बावजूद अंकुरित न होने के लिए शापित होते है उन्हें मिट्टी में यूं ही बेतरतीब पड़े रहना पड़ता है फसल पकने तक। हसीन मौसम में वो अपने ही वर्ग का बहिष्कार झेलते हुए अपने आसपास जमें खरपतवार से दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाते है मगर खरपतवार के अपने दुःख है वो प्रकृति में अनाथ होने की पीड़ा से जिद तक का सफर तय करके आए होते है उनके पास एक बाँझ बीज के लिए न समय होता है न सहानुभूति। बीज की यात्रा अकेलेपन और उत्पादकता के समूह में निष्प्रयोज्य जीने की यात्रा है मिट्टी के आंचल में उन्हे ममत्व नही उपेक्षा मिलती है क्योंकि मिट्टी भी उपयोगिता का मूल्य सबसे पहले देखती है। अपने निष्पादन से चूक गए बीज की सबसे अजब बेबसी यह भी होती है कि वो बाहर से मिलने वाली खुराक पर आश्रित जरूर होते है मगर उस भोजन का एक भी अंश उनकी आत्मा को तृप्त नही कर पाता है वो समझ नही पाते है कि बिना प्रतिदान की क्षमता के भोजन ग्रहण करना खुदगर्जी है या एक भौतिक जरूरत।
जिस वक्त वो उपचार की चासनी में डूबे थे तब वो भी अन्य दुसरे बीज की तरह अपनी क्षमता और उत्पादकता को लेकर उतने ही आश्वस्त थे और यही आश्वस्ती उन्हें समूह की स्वीकृति प्रदान करती थी मगर जमीन में बिखरने के बाद उन्हें खुद की अनुपयोगिता और उनके अस्तित्व के क्रूर मजाक का कुछ ही दिन बाद पता चल गया था फिर वो कुछ दिन असमंजस में रहें एक सीमा तक हवा पानी मौसम के बदलनें का इन्तजार किया मगर तब भी परिणाम अनुकूल नही आए तो उन्होंने यह सोचकर खुद को दिलासा दी की शायद वो उनके हिस्से जमीन का वो भाग आया जो उपजाऊ नही था वो खेत के कोने में निर्वासित भाग के नागरिक बन गए थे।
दरअसल बीज जनना चाहते थे उम्मीद की फसल मगर उनकी चाहतों पर खुद का वश नही था इतने बाह्य कारण थे कि सबकी अनुकूलता उनके अंकुरण की वजह बनती मगर मिट्टी हवा खाद पानी और उनकी खुद की आनुवांशिकी का ऐसा तादात्मय बिगड़ा की बीज केवल बीज रह गए।
वो पुनरुत्पादन की प्रक्रिया का हिस्सा नही थे वे अकेले निर्वासित और अजनबी जिंदगी जी रहे थे यह उनका सबसे बड़ा दुःख था। ऐसे बीज इससे भी बड़ा दुःख यह था कि अपने फसल चक्र के बीतने के बाद दूसरी फसल में उनमे अंकुरण फूट गया था यह किसकी चालाकी थी वो आज तक नही समझ पाए थे अब वो किसे दिखाते कि वो जन्म दे सकते है अपने ही जैसे एक जीवन को उनको नई फसल के बीच खरपतवार समझ उखाड़ दिया जाता फिर वो सड़क किनारे धूप में सूखते दम तोड़ देते उनकी अंतिम चाह यही होती कि उनका कोई बीज न बचे ताकि वो अपनी अनुपयोगिता के चक्र को समाप्त कर जी सके एक अज्ञात और विलुप्त जीवन।

'इतवारी बीज'

No comments:

Post a Comment