Saturday, November 8, 2014

इतवारी ख्वाब

वो एक ख्वाब था उसके लिए एक ऐसा ख़्वाब जिससे हकीकत में मिलना न वो चाहती थी और न ख़्वाब ही इसकी इजाजत देता था। ख्वाब में उससे मिलना बतियाना सीधे सीधे दो हिस्सों में जीने जैसा था वो नींद में जागती थी और जागते हुए बेखबर रहती थी।उसकी बंद पलकों की चमक किसी जुगुनू के माफिक होती थी। उसके लिए उसका ख़्वाब किसी अतृप्त कामना की अभिव्यक्ति नही था बल्कि उसका ख़्वाब उसके पूरे वजूद को जीने का सलीका भर था।
उसका ख्वाब वो अपनी इच्छा से देख सकती थी उसकी पल पल छूटती बनती बिगड़ती दुनिया में बस एक यही बात उसके हाथ में थी। वो ख्वाबों में उसका हाथ थामें उन गलियों में निकल पड़ती जहां दरवेशों के टोले थे और लोबान की खुशबू से रूहानी इल्म अता होता था उसके साथ वो देख लेती थी डूबते सूरज और ख़ूबसूरती परिंदों का वापिस अपनी नीड़ की तरफ लौटना।
उसका ख्वाब भले ही छोटे समय के लिए आता था मगर उसमें वो दोनों अंजुरी भर समेट लेती थी दुनिया भर की खुशियाँ। उसके बिस्तर को देख ख़्वाब की दुनिया का अनुमान लगाया जा सकता था कभी उसकी सिलवटों से एक मानचित्र बना होता तो कभी वहां एक भी सिलवट न मिलती मानों ख़्वाब में ही उस योगिनी ने साध ली कोई सिद्ध योगमुद्रा।
दरअसल उसकी ख़्वाबों की दुनिया हकीकत से एकदम जुदा थी दिन में जिसका नाम सोचने भर से उसके मन में संकोच के बादल छा जाते थे ख्वाबों में वो उस पर चिल्ला सकती थी बेहद अधिकार के साथ। कभी कभी वो छोटे बच्चे की तरह सोते हुए मुस्कुराती इसका एक ही अर्थ होता कि आज ख्वाबों में उसने फिर से पूछ लिया है कि आखिर तुम मेरी क्या हो? एक यही सवाल था जिसका उसके ठीक ठीक जवाब नही पता था उसकी मुस्कुराहट इस बात की गवाह थी कि वो चाहती थी कि कुछ सवालों के कभी कोई जवाब तय ही न हो।
उसके लिए ख्वाबों में जीना कोई भ्रम नही था बस उसने खुद को चेतन की बजाए अर्द्धचेतन के स्तर पर तलाश लिया था जहाँ उसे उसका अक्स थोड़ा ज्यादा मुक्कमल और साफ़ किस्म का नजर आता था। उसके लिए सोना नींद के लिए नही ख्वाबों के लिए जरूरी लगता था ताकि वो खुद के उस अधूरे किरदार से मिल सके जो अंदर बहुत गहरा धंसा हुआ था एक अरसे से।
उसके ख्वाबों की एक अजीब बात थी वें रोज़ वही शुरू होते जहाँ से कल खत्म हुए थे फिर भी उनमें एक नयापन होता था।
एक ख़्वाब टुकड़ा टुकड़ा जिन्दगी को एक धागे में पिरोता था उसके ख्वाबों में कुछ भविष्य के संकेत होते थे मगर वो कुछ प्रतीक थे जिन्हें अमूर्त रूप में समझना थोड़ा मुश्किल था वो उनका अर्थ जानती थी मगर समझती नही थी।
ख्वाबों में ऊँचाई से गिरना, आँखों के सामनें ट्रेन का छूट जाना, कुछ जरूरी चीजों को भूल जाना ये कुछ तयशुदा एपिसोड थे जो अक्सर आते थे मगर वो उनका रूपान्तरण कर देती कुछ कुछ नाट्य रूपान्तरण जैसा वो ऊंचाई से गिरती मगर उसका थाम लेती फिर दोनों हवा में तैरते रहते उसकी आँखों के सामने ट्रेन छूट जाती मगर वो घबराने की बजाए उसके साथ स्टेशन पर बैठ कुल्लहड़ में चाय पीने लग जाती।
वो उसको हर जगह अपने मनमुताबिक़ क्रिएट करने का कौशल रखती थी यही वजह थी कि हकीकत में वो भले ही नजर न आएं मगर उसके ख़्वाबों में वो उसका हाथ थामें हर जगह नजर आता था। उसके ख्वाब उसके जिए गए सच के सच्चे गवाह थे यह बात केवल वो जानती था या फिर उसके ख़्वाब। वो केवल इतनी दुआ करता कि उसके ख़्वाब न कभी सच हो न कभी झूठ और न कभी टूटे ताकि उसका वजूद उसके ख्वाबों में सांस लेता रहें अपने अधूरेपन के साथ वो क्या चाहती थी ये खुद उसे भी नही पता था।

'इतवारी ख़्वाब'

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