Tuesday, November 11, 2014

नदी

उस दिन तुम नंगे पैर पानी में पैर डाले बैठी थी ठीक हमारे सामने नदी बह रही थी ठीक उसी दिन मै यह जान पाया कि एक नदी तुम्हारे अंदर भी बहती है तुम्हारे पैरों के कोमल स्पर्श के जरिए दोनों नदियां आपस में जुड़ती है और इसके लिए शाम से बढ़िया मुफीद वक्त क्या हो सकता था। बहता पानी मन को शांत करता है ऐसा तुम्हें देख महसूस होता है  तुम्हारे पैरों में बंधी पायल पानी के प्रवाह से तुमसे अधिक उल्लसित होती है उसमें बंधे दो छोटे छोटे घुंघरु इतनी धीमी गति से बज रहे थे कि उनका नाद सुनने के लिए मैंने अपने कान तुम्हारे घुटनों पर टिका दिए थे आसपास के लोगो को अनुमान था कि यह एक रूमानी शाम है जब मै तुम्हारी गोद में सिर रखे बैठा था मगर मै दो नदियों के बीच बने सेतु पर खड़ा हो उस महीन आवाज को सुन रहा था जो तुम्हारी पायल की खनक से थोड़ी जुदा थी। बाह्य तौर पर ये दो झक सफेद पैर थे मगर मेरे लिए देखते ही देखते दो नदियों के किनारे थे जिनके एक किनारे बैठ मै दुसरे किनारे का अनुमान लगा रहा था इन दोनों नदियों की गहराई लगभग समान थी मगर दोनों के पानी के वेग,तापमान और स्वाद में जमीन आसमान का फर्क था। सामने बहती नदी के जल का आचमन कर सकता था उसके बाद उस नदी के बारें में कुछ भी अज्ञात नही बचता था मगर जो नदी तुम्हारे अंदर बहती थी उसका जल आचमन के लिए उपलब्ध नही था। तुम्हारे घुटनों पर एक कान टिका देने के बाद मेरा मन सीधे सीधे दो हिस्सों में बंट गया था एक समाने बहती नदी में लटके तुम्हारे पैर देखता और उनके सौन्दर्यबोध पर अभिभूत होता जाता और दूसरा मन एक नाराज बच्चें की तरह अपलक तुम्हारे अंदर की नदी के किनारे खड़ा उसको देखता चला जाता तुम्हारा अन्तस् अज्ञात पत्थरों के धरातल से इतना ऊबड़ खाबड़ किस्म का था कि उसमें तैरना तो दूर खड़े होने भी मुश्किल था वहां हरियाली के नाम पर कुछ शिकायत के सफेद कुकरमुत्ते दिखते थे मै किनारे किनारे चलता हुआ तुम्हारी नदी के उद्गम स्थल तक गया मगर वहां मुझे कोई ग्लेशियर नही दिखा इसलिए तुम्हारे अंदर बहती नदी का कोई ठीक ठीक स्रोत पूछे तो मै कुछ न बता पाऊंगा।
बस एक बात सबसे अलग थी तुम्हारे मन की नदी का पानी सामने बहती नदी के पानी से कई गुना अधिक साफ़ था वो आचमन योग्य था मगर मेरे पास झुकने का साहस नही बचा था दरअसल वो मेरे सम्मोहन का समय था भले ही मुझे तैरना नही आता मगर तुम्हारे अंदर नदी को देख मै छलांग लगाने की सोच रहा था तभी एक बूँद मेरी गाल पर टपकी मैंने घूम कर देखा वो तुम्हारी आँख का एक आंसू था जो शायद मेरी छलांग को आत्महत्या की कोशिस समझ मुझे रोकने चला आया था खुद ब खुद उसके बाद तुमनें जल्दी से नदी से पैर निकाले और कहा चलो अन्धेरा हो गया अब हमें चलना चाहिए उस दिन से रोज चल ही रहा हूँ मगर कहीं पहूंचता नही हूँ नदी एक जरिया थी तुमसे मिलने जब से अंदर की नदी सूख गई तुमने कभी नही कहा चलो किसी शाम नदी किनारे बैठते है चुपचाप अब मै बहते पानी को नदी नही कह पाता तुम्हारे अंदर की नदी सूखने का एक यह प्रभाव मुझ पर भी पड़ा तुम पर क्या बीती होगी ये तुम ही बता सकती हो।

'दो नदी एक किनारा'

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