Wednesday, November 12, 2014

मुलाक़ात

तुम्हारी सबसे बड़ी फ़िक्र यह थी कि कहीं तुम्हें ठगा तो नही जा रहा है किसी को ठगना भी एक कला है तब तो और भी जब सामने वाले को साफ़ साफ़ पता हो कि उसे ठगा जा रहा है। ठगना केवल धन से ही नही होता है धन का ठगा शख्स फिर भी सम्भल जाता है मगर जिसको मन से ठगा गया हो उसकी चाल में ताउम्र एक लड़खड़ाहट बनी रहती है। तुम्हारी फ़िक्र एकदम से गैर वाजिब भी नही थी दुनिया में हर भला आदमी कम से कम एक बार ठगा जा चुका है ऐसे में किसी के निर्मल प्रेम को शंका की दृष्टि से देखना खुद को ठगी से बचाने का एक अभ्यास भी हो सकता है इसलिए मेरी सत्यता परखनें के तुम्हारे बालसुलभ प्रयासों से आरम्भ में मुझे थोड़ी खीझ जरुर हुई थी परन्तु बाद में तुम्हारी यह सावधानी तुम्हारे सम्मान की वजह भी बनी।
दुनिया में सबसे मुश्किल काम है खुद के जैसा कोई दूसरा शख्स तलाशना दोस्ती शायद इसी तलाश से उपजा रिश्ता है जिसनें भी हम बनाए उसने इतने यूनिक किस्म के बनाएं कि कोई वैसा दूसरा कहीं नही मिल पाता है खुद से मिलते जुलते लोगो को देखते ही बाँधने की एक स्वाभाविक इच्छा होती है हमारा सबसे बड़ा भय उनको खो देने का भय होता है मैंने भी तुम्हें एक स्नेह के बंधन में बांधना चाहा था मुझे तुम उस वक्त मिली जब मेरी खुद में रूचि लगभग समाप्त हो गई थी मै देह से बाहर निकल मन के घोड़े पर सवार था जहां जहां से मै गुजरता मेरी देह मेरे पीछे बंधी हुए घिसटती हुई यात्रा कर रही थी।
तुमसे मिलने के बाद लगा कि जीवन का एक यह पक्ष भी हो सकता है जिससे मै अनजाना जी रहा था इसलिए खुद को जानने के लिए तुम्हारा चश्मा उधार मांग लिया जानते हुए कि तुम्हें खुद बिन चश्में के कम दिखाई देता है अब मै तुम्हारे मन के संकोच पढ़ पा रहा था तुम्हारे पूर्व के अनुभवों के श्याम पट पर इतिहास के कुछ पाठ लिखे हुए थे तुम्हारे हृदय के समानांतर उदासी की एक झील थी जिसकी तल पर वक्त की साजिशों की काई ज़मी थी मगर बाहर से देखने पर झील का पानी इतना स्थिर था कि उसमें सवालों की कंकड़ भी कोई आवृत्ति नही पैदा कर सकती थी।
तुम्हारे मन में नियति के षडयंत्रो के प्रति क्षोभ जरुर था मगर वह भी मन के रेगिस्तान में उतना ही अज्ञात था कि मै उसके केवल एक बार देख पाया फिर वो बवंडर बन दूसरी जगह उड़ गया था।
पीड़ाओ को सहेज पाना तुम्हारे सत्संग की वजह से सीख पाया वरना तुमसे पहले मै खुद की पीडाओं को बिन पूछे ही गाने लग जाता था तुमने सिखाया कि सबके जीवन में पीड़ाओं का कोटा पहले से ही इतना भरा हुआ है कि वें पीड़ाओं के आयात से बचना चाहते है यदि बांटना ही चाहते हो तो उनको उनके उन अहसासों से मिलवाओं जो रोजमर्रा के जिन्दगी के झंझटों में अक्सर गुमशुदा हो जाते है तुम्हें न जाने क्यों ऐसा लगा था कि मै ऐसा बखूबी कर सकता हूँ।
मैंने कभी तुम्हें शिकायत करते नही देखा जैसे तुमनें लोक को स्थाई रूप से क्षमा कर दिया हो तुम अपने हिस्से का दुःख इतनी सहजता से जी रही थी कि मुझे वो दुःख नही सुख दिखने लगा था तुमसे मिलने के बाद मेरे दुखों का बर्ताव बदल गया शायद तुम्हारे दुखों ने उन्हें बता दिया था कि अब मेरा सत्संग किसके साथ चल रहा था मेरे दुःख गहरे आध्यात्मिक मूल्यों में रूपांतरित हो गए थे।
जीने के लिए हम रोज खुद को ठगते है इसलिए ये ठग विद्या हमारी जिंदगियों में शामिल है तुम्हारे भय को तुम्हारें चश्में से देखने के बाद मेरी आँखें नम हो गई थी फिर तुमने अपना चश्मा मेरी आँखों से उतार अपने रुमाल से मेरी आँखों की नमी साफ़ की तब मै बिन चश्में यह देख पाया कि अब तुम्हें ठगे जाने का नही मेरे अंदर बचे रहने का भय है। मै कहना चाहता था डरो मत ! जब तक मै हूँ तुम मेरे अंदर सुरक्षित हो एक पवित्र किताब की तरह जब जब मै उलझ जाऊँगा दुनियादारी में तब तब तुम्हें पढ़ना मेरी जरूरत बनेगी और एक चालाक दुनियादार की तरह कहूँ तो मेरी जरूरत तुम्हें कभी मेरे अंदर मरने नही देगी। ये बात उस दिन नही कह पाया आज कह रहा हूँ समझ लेना वैसे भी मुझे अक्सर तुम्हें कुछ कहना नही पड़ता तुम समझ लेती है बहुत कुछ खुद ब खुद।

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