Thursday, November 13, 2014

मतलबी बातें

इससे पहले मेरे इस  छायावादी मन के सारे शब्द खर्च हो जाए कुछ बातें बताना जरूरी समझता हूँ सतत इतना कुछ कहने के बाद निसंदेह वो दिन भी आएगा जब मेरे पास कहने के लिए भले ही भाव हो परन्तु शब्द नही होंगे उस समय मेरा मौन अन्यथा लिए जाने के शापित होगा। मेरी गति खुद मुझे चौका रही है तुम तो निसंदेह असमंजस में होगी ही रोज़ इतनी तेज गति से मै खर्च हो रहा हूँ कि तुम तक आते आते शायद मेरे पास शब्दों की एक पाई भी न बचें। इतना कुछ कहे गए के बीच बहुत कुछ अनकहा भी रह गया है उसके लिए मै एक उपयुक्त समय की तलाश में था मगर समय का और मेरा जन्म जन्मान्तरों का बैर है इसलिए तुमसे कभी मिल नही पाऊंगा यह बात मेरे मन में गहरी बैठी हुई है।
संक्षेप में तुमसें कुछ बातें कहनी जरूरी हैं क्योंकि पता नही कल हो न हो। कई दिनों से एक बात सोचता हूँ  और केवल सोचता ही नही उस बात को जीता भी हूँ मेरी वजह से तुम कहीं एक जगह पर ठहर तो नही गई हो कई दफे ऐसा लगने लगता है कि मेरी वजह से तुम्हारी यात्रा बाधित हो गई है तुम्हारी अपनी बसाई दुनिया में बेमौसमी पतझड़ शुरू हो गई है तुम्हें जब भी बेवजह उदास देखता हूँ तो मै खुद को उसकी एक वजह मान खुद पर ही संदेह करने लगता हूँ यह करीब करीब खुद को अपराधबोध में धकेलने जैसा होता है।
दरअसल दो दशक से ज्यादा वक्त हो गया है मै उदासी से संक्रमित हूँ इसलिए मुस्कुराते हुए मूंह पर रुमाल रख लेता हूँ मेरी उदासी का संक्रमण बहुत से हंसते हुए लोगो को लग चुका है तुमसे एक सुरक्षित दूरी इसलिए भी मेरी एक मजबूरी है। मै कतई नही चाहता कि तुम्हारी शाम बोझिल रात बैचेन और सुबह अनमनी हो जाए मै तुम्हारे जीवन में इंद्रधनुष की तरह खुशियों को खिलते हुए देखना चाहता हूँ तुम्हारी आँखों की चमक से चाँद को उधारी मांगते हुए देखना चाहता हूँ मेरी चाहत तो यह भी है कि तुम्हारी कान की बालियों पर खुशियाँ अपना झूला डाल छोटी छोटी पींग भरें तुम्हारी मुस्कान को देख फूलों पर अपने रंग और गाढ़े करने की जिद सवार हो जाए।
मै चाहता हूँ तुम्हारे गुनगुनाने की मद्धम आवाज़ प्रार्थना लगनें लगें तुम्हारी चूड़ियो की खनक शाम को घर लौटते पंछियों को दिशा का बोध कराए उनकी मदद से वो सुरक्षित अपनी नीड तक लौट सके। मेरी चाहत यह भी है तुम्हारा काजल रोशनी से थकी आँखों को छाया दें और तुम्हारा उडिया कॉटन का शाल सूरज की आँख पर हाथ रख दें जिसे धूप में लेटकर मै आधे शरीर पर ओढ़ सकूं और तुम्हारी खुशबू को घूट घूट पी सकूं।
इतनी चाहतों की कीमत चुकानी पड़ेगी मुझे क्योंकि दुनिया में मुफ्त में कुछ भी नही मिलता है खुद को तुमसे दूर रखना अपनी चाहतों को पूरा होता देखने की रिश्वत भर है क्योंकि अगर तुम मेरे साथ रही तो मेरी उदासी के संक्रमण से संक्रमित ताउम्र छींकती रहोगी और छींकते समय आंख कोई भी खुली नही रख पाता है तुम्हें यूं अस्त-व्यस्त देखना मेरे लिए सदी का सबसे बड़ा  सदमा होगा इसलिए मैंने खुद को तुम्हारे जीवन में अनुपस्थित नही स्थगित करने का निर्णय लिया है ताकि तुम्हें लेकर जो ख़्वाब मैंने देखें है उनको खुद के खर्च होने से पहले पूरा होते देख सकूं मेरे तमाम फक्कड़ी के दावों के बीच तुम मेरे इस निर्णय को केलकुलेटिव समझते हुए मुझे मतलबी समझ सकती हो बल्कि मै तो इरादतन यही चाहता हूँ कि तुम मुझे मतलबी समझों ताकि दुनिया को पता चले कि समझ का एक विस्तार ऐसा भी हो सकता है।

'मतलबी बातें'

No comments:

Post a Comment