Friday, November 21, 2014

मोबाइल जिंदगी

लो खींच दी है मैंने एक महीन रेखा सम्बन्धों के अभ्यारण्य में।अब तुम उस पार सुरक्षित हो अब न सम्बोधन का संकट है न रिश्तों के नामकरण का।सब व्यवस्थित दिख रहा है इस विभाजन के बाद यह व्यवस्थित है भी यह नही कह सकता यकीनन।लोक में रहकर लोक के प्रभाव से मुक्त रहना एक किस्म की सिद्ध साधना है धीरे धीरे आसपास की कुंठा से उपजे प्रश्न हमारी निजता को घायल करते चले जाते है।जिस बात को ठीक ठीक खुद ही न समझें हो उसे किसी दुसरे को समझा पाना बेहद मुश्किल काम है।
और वैसे भी मेरा तुमसे कोई सांसारिक नाता भी नही है तुम नदी हो तो मै किनारे पड़ा एक खण्डित पत्थर तुम आकाश हो तो मै भटकता हुआ उल्का पिण्ड तुम घना जंगल हो तो मै एक आवारा खरपतवार तुम हवा हो तो मैं बंद गुफा। इतने विरोधाभासों के मध्य मै तुम्हारे जीवन में टंगा था एक वैताल सा।
जब वक्त ने करवट ली तब मै तुम्हारे अपेक्षा के बोझ से लड़खड़ाते कदम देख पाया हालांकि मैंने कोई अपेक्षाऐं आरोपित नही की कभी मगर फिर भी तुम्हारे नाजुक कन्धे मेरे एक आंसू के बोझ से झुक गए है आंसूओं की आद्रता से तुम्हारी शरीर की नमी का स्तर सामान्य से कई गुना बढ़ गया है तुम्हारी हथेली पर खींचे हस्तरेखाओं के मानचित्र पर मै घबराहट की भांप उड़ते देखता हूँ नमी की कई छोटी छोटी नदी आपस में मिल जाती है और वो तुम्हारे हृदय के वेग के बारें में साफ़ साफ़ संकेत देती है तुम्हारी हथेली को बिना छुए महज देखकर तुम्हारे मन के मौसम की भविष्यवाणी मैं कर सकता हूँ। दरअसल मेरी गति और मेरी लोच मेरी ग्राह्यता में सबसे बड़ी बाधा है तुम मेरे विषय में किसी एक निर्णय पर पहुँचती हो उससे पहले मै खुद को खुद ही खारिज कर देता हूँ किसी उपग्रह की तरह मेरी एक कक्षा निर्धारित नही है मेरी यात्रा इतनी अजीब किस्म की है तुम्हें आज तक यह अनुमान नही हो पाया है कि मै वस्तुत: हूँ क्या। कभी आस्तिक कभी नास्तिक कभी आशा में जीता कभी निराशा को पीता कभी बच्चों सा सरल तो कभी वयस्कों सा जटिल। तुम्हें इस बात पर भी हैरत हो सकती है कि मेरे पास भविष्य का कोई यूटोपिया नही है न कोई नियोजन योजना है। बस मै हूँ यही एक प्रमाण है मेरे होने का।
ज्यादा बौद्धिक बातें जटिल और बोझिल लगने लगती है इसलिए यह रेखा खींच कर मै तुम्हे एक सरल भूखण्ड  देता हूँ वहां अपने सपनों की दुनिया रचो जियो अपने हिस्से का सुख ! मै इस पार खुद को इकट्ठा करने की कोशिस करता हूँ यदि तुम्हारी दृष्टि से ओझल हो भी जाऊं तो भी ये मत सोचना कि मै तुमसे दूर हूँ तुम्हारी पलकों के अंदरुनी फलक पर कूट संकेत में अपना स्थाई पता मैंने टांक दिया है बस एक बार आँखे बंद करना और जिस बात पर तुम मुझसे चिढ जाती थी उसे याद करना मै तुम्हें दिख जाऊँगा तुम्हारे ही आसपास यदि दिल फिर भी तसल्ली न पाएं तो एक विज्ञापन गुरु की इस पंचलाइन को याद करना 'दूरियों का मत फांसले नही' ये बात मोबाइल नेटवर्क के समर्थन में कही गई थी मगर अब ये खुद ब खुद हमारे रिश्तें की गोद में आकर बैठ गई है शायद इसी को जिंदगी मोबाइल होना कहा जा सकता है।

'जिंदगी का मोबाइल होना'

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