Saturday, October 25, 2014

इतवारी बात

मेरी दृष्टि और चित्त सदैव से ही अलोकप्रिय श्रेणी की तरफ ज्यादा आकर्षित होता रही है जो लोकप्रिय है अति स्वीकृत है उसे मै भीड़ के उपभोग के लिए छोड़ देता हूँ। ऐसा मै कब से हूँ मुझे खुद याद नही है मगर जो परित्यक्त है त्याज्य है या फिर लोक की दृष्टि में लगभग महत्वहीन है उन सबमें गहन दर्शन और कलात्मक मूल्यों की खोज करना मेरा प्रिय शगल रहा है। टेपरिकॉर्डर के जमाने में मुझे न जाने क्या सूझी मैंने हिन्दी फिल्मों के लोकप्रिय गीत के सेड वर्जन जो बहुत छोटे होते है ( एक मुखड़ा एक अन्तरा अधिकतम) उनको ऑडियो कैसेट मे रिकॉर्ड करवाया एक कैसेट में लगभग तीस वर्जन रिकॉर्ड हो गए थे मेरी इस सनक पर कैसेट रिकॉर्डर भी हैरान था उसने एक कैसेट रिकॉर्ड करने के तीन गुने पैसे लिए थे। उस कैसेट को सुनना बड़ा डिवाइन प्लीज़र देता था, एक-दो मिनट से बड़ा कोई ट्रैक नही था जिन गानों के रोमांटिक वर्जन का उपयोग प्रेम पत्र के विकल्प के रूप में कर रहे थे ( उस दौर में प्रेमी/प्रेमिका को कैसेट गिफ्ट करने का भी रिवाज़ था) उनके सेड वर्जन को मैंने अपने कलेक्शन में पनाह दी थी और यकीनन वो मेरा एक बेहतरीन कलेक्सन था।
जो उपेक्षित तन्हा और निर्वासन काट रहे थे उनसे मेरी गहरी मुलाकातें होने लगी थी मैंने लोकप्रिय आकर्षक और अलोकप्रिय उपेक्षित में ऐसा संतुलन साध लिया था कि मै उतनी ही घनीभूत संवेदना के स्तर से दोनों से जुड़ गया था।
झील की ख़ूबसूरती पर उसके धैर्य पर कितनी कविताएँ लिखी गई कुछ नें उन्हें बुद्ध सा धीरजधारी बताया तो कुछ ने उनके इन्तजार पर कसीदे पढ़े मगर मै उन सब से उकता कर पोखरों और गाँव के तालाब (जोहड़) की तरफ लौट आता वो इतने तन्हा थे कि कोई उनके किनारे उनकी पीड़ा पूछने नही आता था वो हद दर्जे के उपेक्षित थे उन्हें दुर्गन्ध का पर्याय समझा जाता मगर मेरे लिए वो सिद्ध कोटि की अमूर्त चेतनाएं थी जो किसी से कोई शिकायत नही करती जो तमाम बहकर आने वाली गन्दगी को अपने दिल में पनाह देती उनके पानी की सतह पर जब जब काई को बढ़ते देखता तो मेरा मन उनके प्रति कृतज्ञता से भरता चला जाता वो अपनी हदों की कैद में जीने वाले स्थिरमना साधक लगने लगते जो तमाम अवशिष्ट को अपने अंदर समा लेने के बाद भी और कवियों स्त्रियों बच्चों के द्वारा अघोर उपेक्षा झेलने के बाद भी भूमि में जल स्तर को उचित  बनाए रखने में अपना निर्लिप्त योगदान करते रहते इस दौर में वो कम ही बचें है मगर जो बचें है वो मेरे लिए झील की ख़ूबसूरती से कई गुना अधिक समादृत है।
सवाल तो यह भी उठना लाज़मी है कि उपेक्षित तन्हा अलोकप्रिय श्रेणी की चीज़ों में मेरी दिलचस्पी की वजह कहीं ये तो नही कि कहीं मै खुद भी उसी बिरादरी का तो नही हूँ तभी उनकी खोजखबर लेने की सामाजिकता निभाता जा रहा हूँ। हो सकता है इस अवधारणा में कुछ सच्चाई भी हो मगर लम्बे समय से ही मेरी रूचि हाशिए पर जीते लोगो,वनस्पतियों,कला,संगीत और प्रकृति के अन्य तत्वों में सतत किस्म की बनी हुई है। लोकप्रिय और स्वीकृत वस्तुओं में मेरा क्षणिक आकर्षण बचता है इसलिए दुःख झूठ अवसाद उपेक्षा तन्हाई के मुकदमें में फंसे लोगो की खोजखबर लेता मैं खुद बहुत दूर निकल आया हूँ इस अज्ञात दुनिया का दर्शन वास्तव में उस प्रचलित दर्शन से न केवल गहरा है बल्कि बहुत अर्थों में व्यापक भी है। जिसको जितना जानते है यह उतना ही विस्मय से भरता है इसलिए कहता हूँ दुनिया में कुछ भी निरूद्देश्य और निष्प्रयोज्य नही है बस खुद का चश्मा बदलना होता है दुनिया इस तरह से भी खूबसूरत दिख सकती है बस अपने दिल को बड़ा और नाक को छोटा करने की जरूरत है।

'इतवारी बात'

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