Friday, October 3, 2014

क्लिनिक प्लस

आंवला रीठा शिकाकाई दही तेल मट्ठा और अन्य घरेलू बाल धोने की परम्पराओं के बीच 'क्लिनिक प्लस' शैम्पू का आना एक बड़ी क्रांति थी आज भी मेरे जेहन में क्लिनिक प्लस की खुशबू इस तरह बसी हुई है कि उसका स्थान कोई अन्य शैम्पू की खुशबू नही ले सकी। शैम्पू के अरोमा विज्ञान ने लाख तरक्की कर ली हो मगर आज भी क्लिनिक प्लस की खुशबू सबसे यूनिक और क्लासिक किस्म की बनी हुई है। कवि हृदय से कहूँ तो दूर छत पर किसी अनामिका के क्लिनिक प्लस से धुए बाल आज भी प्रेम कविता रचने की प्रेरणा बनने की क्षमता रखते है।
खुशबू का बड़ा विचित्र मनोविज्ञान होता है यह मन के तप्त तल पर शीतल छाया जैसी होती है यह हमें खुद के अच्छाईबोध से सेकण्ड्स के लिए कनेक्ट कर देती है मदहोशी में ही सही हम एक छोटी उड़ान भर अपने मन की मुंडेर का चक्कर लगा बिना थके लौट आते है।
हवा के रुख के बिना पानी की तरलता पर सवार होकर क्लीनिक प्लस की खुशबू जब भी मेरे दर तक आती मुझे हाथ में क्लीनिक प्लस का दो रूपए वाला सैचेट दबाए तुम नजर आती इस रसायन से बालों की ख़ूबसूरती बढती तो है ही साथ कुछ गंध प्रेमियों के दिमाग का डैनड्रफ भी साफ़ हो जाता है।

'क्लिनिक प्लस और मै'

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