Thursday, October 16, 2014

बातें है बातों का क्या

अगर तुमसे सम्पर्कशून्य होने के लिए महज़ यह साधना होता कि एक अदद आई डी डिएक्टिवेट कर दूं और फोन के दोनों सिम बदल लूं तो यह एक बेहद सहज़ और सस्ता साधन होता मगर तुम्हारी घुसपैठ जज्बातों से लेकर तसव्वुर में है जेहन में तुम्हारी यादों के जाले लगे है एक तुम्हारी दीद की उम्मीद सब उम्मीदों को अपने कब्ज़े किए हुए है। गैर दानिश्ता या दानिश्ता तुम्हारे अलफ़ाज़ मेरी याददाश्त के बालों में कंघी करते रहते है। तुम्हारी हंसी के बदले मै रोज़ मन की गिरह तौलने बैठ जाता हूँ तुम्हारी उदासी के राग रोज़ मेरे कान में महामृत्युंजय मंत्र फूंक जाते है। तुम्हें बिन बताएं हर शाम मै अपने चश्में को देखता हूँ उसकी एक लेंस में तुम्हारा अधूरा अक्स उभरता है। सर्दी की आमद पर तुम्हारा शाल मेरी नाक को बहुत याद आता है इस सर्दी में नाक और कान ने लाल होने से इनकार कर दिया है दोनों ने सर्द हवाओं के झोंको से दुश्मनी कर ली है।
तुम्हारे कंगनों के बीच में जो दो तन्हा चूड़ी है उनसे गवाही ली जाए तब शायद कुछ तुम्हारी भी कशमकश के राज़ जाहिर हो मगर उनके भी कोने टूटने शुरू हो गए है एक दिन वो भी तुम्हारी बेवजह की नाराज़गी से उकता कर तिड़क कर टूट जाएँगी उसको मनहूसियत की निशानी समझ कर तुम भले ही दफ्न कर दोगी मगर वो टूटे टुकड़े मरते दम तक सरकारी गवाह के माफिक मेरे ही तरफदार  रहेंगे।
भूलने को बड़ी नेमत समझता हूँ बदलनें को इंसानी फितरत मगर ये दोनों मुकदमें तुम्हारी अदालत में हार चुका हूँ फिलहाल बादलों के मार्फत चाँद के यहाँ अर्जी दाखिल की है कि रात को वक्त पर निकल जाया करें ताकि उसे देख तुम्हारा हाल जान सकूं मगर इन मतलबी बादलों ने बदलती रुत से मिलकर मेरी शिकस्त का पुख्ता इंतजाम किया हुआ है यह खबर आज ही मुझे एक टूटते तारें ने दी। तुम्हारी तमाम शोहरतों के आलम की बीच कुछ बर्बाद किस्म के मेरे भी खबरी है जिनकी अय्यारी की मदद से मै हर्फ़ हर्फ़ तुम्हारी खबर रखता हूँ।
तुम्हें भूलने के लिए जेहन में तल्खियों का होना बेहद जरूरी है मगर तुम्हारी तमाम तल्ख़ बातों के माने निकालने बैठता हूँ तो मुझे वो रूहानी नुक्तें लगने लगते है जो किसी मुसाफिर को सफर पर निकलनें से पहले कबीले का बुजुर्ग बयाँ किया करता था उसमें इल्म की खुशबू होती थी और तजरबें कैफियत।
अफ़साना या हादसा पता नही क्या थे तुम मगर जो भी थे उस पर तबसरा नामुमिकन है अब तुम्हारे ऐब की तनकीद करते हुए मै तुम्हें खारिज करता हूँ मगर यह भी उतना ही सच है कि तुम्हारा अदब इल्म और हुनर तुम्हारे वजूद से बहुत बड़ा है तुम्हारे मैयार को नाप पाऊँ इतनी मेरी न कैफियत है और हैसियत गोया तुम कोई करीबी दोस्त न होकर जीते जागते खुदा थे मेरे लिए।
तुम्हें खुदा कह कर खुद को हलका कर रहा हूँ क्योंकि मै भर गया हूँ अंदर से बेहद वरना मुझे खुद नही पता तुम मेरे लिए क्या थे कुछ थे भी या नही।

'बातें है बातों का क्या'

1 comment:

  1. सच.. .... सब बस दिमागी बुखार सा हैं. .....हाले दिल कुछ.....
    Un-kahi ki alag aziaat hai
    Or kahi ka azab mtt poocho...

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