Tuesday, October 28, 2014

वादा

तुमने एक ही वादा लिया था यह वादा किसी किस्म की गोपनीयता का वादा नही था ना ही हमेशा के लिए तुम्हारा बनें रहने की कोई शर्त थी ना ही इसमें केवल तुम्हें और तुम्हें चाहने की जिद थी तुम्हारा वादा दरअसल तुम्हारा डर था और डर से बढ़कर निर्वासित या अज्ञात रहनें की तुम्हारी आदिम चाह थी। दुनिया भर में मेरी जो मशहूर खूबी थी मिलनें के पहले दिन से ही वह तुम्हें थोड़ा डराती थोड़ा असहज करती तुमनें अभिव्यक्ति नही अनुभूति का रास्ता चुना था तुम रोज़ अपने आसपास पसरें दुखों को इकट्ठा करती और इसी रास्ते पर चलकर अपने लिए एक कुटिया बनाने की कोशिस करती वो कुटिया हमारी सच्ची मुकाकातों की गवाह थी,लगभग हर मुलाक़ात पर तुमनें कसम की तरह उस वादे को दोहराती तुम्हें मेरी वादाखिलाफी का एक अज्ञात भय सदैव बना रहता मेरी आश्वस्ति के कुछ दिन बाद तुम फिर से मेरे कॉलर को सीधा करती हुई कहती तुमसें जो कहा है बस वो कभी मत करना।
सच बताऊं निजी तौर पर जब तक तुम साथ थी मैंने तुम्हें दिए वादे को कभी गम्भीरता से नही लिया मगर जब से तुमने उलटे कदम अपनी दुनिया में वापसी की मै लगभग रोज़ उस वादे की जिम्मेदारी के बादलों से घिर जाता और मेरा मन अंदर तक भीगता रहता तुम्हें याद करके मेरी आँखों कभी नम नही होती बल्कि उनकी रोशनी बढ़ जाती पुतली अपने अधिकतम विस्तार तक फ़ैल जाती यह चमक किसी बच्चें की आँखों की चमक के जैसी थी जो उसकी आँखों में कोई नया खिलौना मिलनें पर आती है।
तुम्हारे वादे में एक छिपा हुआ इम्तिहान था जिससे रोज़ गुजरना होता था तुम्हारे जाने के बाद मेरे पास कोई जरिया नही था तुमसें यह बतानें का कि तुम मेरे लिए क्या थी और जो जरिया था वो तुम्हारे वादे की गाँठ से बंधा था तुमनें भविष्य को बहुत पहले देख लिया था जिन दिनों मै लिखने/कहने के शिखर पर था तब तुमने कितना सोच विचार कर अपने वादे की भूमिका सोची होगी यह बात आज भी मुझे हैरान करती है।
खैर ! न तुम तब गलत थी और आज हो और न ही कल गलत साबित होगी मेरे आत्ममुग्धता के दौर में भी तुमने अपने वादे के जरिए मेरे अंदर खुद को हमेशा के लिए सुरक्षित कर लिया था अंदर झाँककर जब तुम्हें देखता हूँ तो तुम्हें बेहद निश्चिन्त अवस्था में पाता हूँ इस वादे की वजह से मेरी कसमसाहट को देखकर तुम आधी गाल से आज भी मुस्कुराती हो ये तुम्हारी जीत है तुम्हारे वादे की जीत है मगर इसमें मेरी भी हार नही है तुम्हारी इस युक्ति से तुम दिल पर काई की तरह जम गई हो जिस पर फिसलता हुआ मै अनंत ब्रहमांड की यात्रा कर सकता हूँ।
आज भी तुमसे ज्यादा तुम्हारा वादा याद करता हूँ और खुद को अनुशासित रखने की कोशिस करता हूँ तुमनें मेरी तरफ पीठ करके कहा था मुझे खुद के अंदर बचाकर रखना मुझे शब्दों के जरिए खर्च मत कर देना मै चाहती हूँ खोटे सिक्के की तरह तुम्हारी कभी न खर्च होने वाली पूंजी बन कर तुम्हारी जेब में अकेली खनकती रहूँ। तुम न मुझे खर्च कर सको और लोभवश छोड़ ही सको।
आज जब मै जब अंदर से भर गया तो यह वादाखिलाफी की पहली क़िस्त यादों के बैंक से निकाल लाया हूँ इस उम्मीद पर कि इसे तुम मेरी वादाखिलाफी नही खुद से बात करने की एक आदत मान माफ़ करोगी वैसे भी इसमें तुमसे ज्यादा तुम्हारे वादे का जिक्र है। फिर भी माफ़ करना मुझे इतना तो हक तुम पर आज भी समझता हूँ।

'वादें और यादें'

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