Thursday, October 30, 2014

नवम्बर

एक यह नवम्बर है और एक वो नवम्बर था। नवम्बर तो हर साल ही ग्यारहवें महीने के हिसाब से आता है और आता भी रहेगा मगर इस बार का नवम्बर जाते साल से ज्यादा तुम्हारे हिस्से की विदाई का कैलेंडर मुझे थमा गया है। जैसे रोज़ रात को सोने के बाद इसकी कोई तयशुदा गारंटी नही होती है कि कल सुबह हम जग ही जाएंगे आठ घंटे की नींद रोज़ सपनों और हादसों से लडती है ठीक वैसे ही तुमसे मिलने के बाद इसकी कतई उम्मीद नही थी तुम्हें याद करते हुए मुझे नवम्बर की भी याद आने लगेगी तुम तो मेरे लिए जनवरी थी भले ही धुंध मे लिपटी हुई थी मगर जून में लू के थपेडों मे तुम्हे याद करके खुद मे हिमालय सी ठंडक महसूस किया करता था।
हकीकत का मिराज़ बन जाना तुम्हारे लिए भी अप्रत्याशित था और मेरे अविश्वसनीय। महीने दर महीने तुम्हारें सम्बंधों का ज्वार-भाटा मुझे किनारे तक ले आता मगर फिर जिन्दगी की ढलान मुझे समंदर की तरफ लौटा देती थी। हर बार की तरह इस सर्दी में मेरे पास तुम्हारी यादों का अलाव भी नही होगा मेरी अंगीठी मे इतनी सीलन भर गई है उसे लाख धूप दिखा दूं मगर उसमे धुआं ही उठेगा सुलगते जज़्बातों पर वक्त ने ऐसा ठंडा पानी डाला कि अब उनका कोयले की तरह दोबारा जलना मुश्किल नजर आ रहा है।
इस सर्दी में तुम्हारी बेपरवाह बातों का मफलर मेरे आधे कान ही ढक पा रहा है बार बार फिसल कर गलें मे फांसी की तरह फंस जाता है मै उसी की गर्माहट से तुम्हारे लिखे खत गीत की शक्ल मे गुनगुनाता हूं मेरे आसपास के लोगो का अनुमान है कि इस सर्दी में मै मतिभ्रम का शिकार हो गया हूं उनका सन्देह मेरी चुप्पी से और गहराता जाता है।
इस नवम्बर में जब बिस्तर को धूप दिखाई तो उसने अपनी तह में बसे किस्सों को बचाने के लिए चादर की सिलवटों को आगे कर दिया मुझे अन्दाज़ा नही था कि वो अपनी नमी से लडता हुआ भी तुम्हें इस तरह से याद रखेगा। शाम के बाद रोज़ बिस्तर पर तुम्हारें स्पर्शो की नदी बर्फ सी जम जाती है और इस सर्द मौसम मे भी मेरी पीठ को गरम अहसास देती है। इस नवम्बर में कम्बल की अपनी एक अलग किस्म की जिद है वो मुझे मूंह नही ढकने देता है उसे मेरी गर्म सांसो से तुम्हारी खूशबू के उड जाने का भय है उसके इस बडप्पन का लिहाज़ करते हुए मुझे रात मे कई दफा तुम्हारी खुशबू से छींक आ जाती है और मै तुम्हारे ख्वाबों से जाग जाता हूं। बिस्तर की इस मतलबी दूनिया के बीच एक उधडा हुआ तकिया ही ऐसा है जो मेरी गर्दन के नीचे तुम्हारे नाम की फूंक मारकर मुझे किसी फकीर की माफिक दुआ देता रहता है उसी के भरोसे मेरे हिस्से कुछ घंटों की किस्तों की नींद आ जाती है।
ठीक एक महीने बाद ये साल हमेशा के लिए एक पुराने कैलेंडर का हिस्सा बन जाएगा मगर साल गुजरने से कुछ चीज़े नही गुजर जाती है जैसे तुम मेरी अन्दर बीत तो गई हो मगर अन्तस से रीत नही पा रही हो। नवम्बर के बाद दिसम्बर का वक्त मेरे लिए और भी भारी होगा क्योंकि एक तरफ साल के बिछड्ने का गम होगा और दूसरी तरफ तुम्हारी बातों के बैनामें दाखिलखारिज़ की मियाद पूरी कर चुके होंगे। इस आती सर्दी के साथ तुम्हारे जाने की तैयारी मेरे लिए ठीक वैसी है जैसे उत्तरी ध्रुव पर किसी पर्यावरण वैज्ञानिक को पत्नि के बीमार होने के खबर का मिलना। बीतते साल में तुम बीत रही है मै अपने गर्म कपडों की मरम्मत के लिए शहर मे एक ऐसा दर्जी तलाश रहा हूं जो बिना ज्यादा सवाल किए उन पर पैबंद लगा दें। अब शायद अलगे साल नवम्बर में ही तुम्हें मेरा खत मिलें और शायद ना भी मिले ये तो बस एक आत्म सांत्वना से भरा कोरा अनुमान है जिसके सहारे मै खुद को वक्त की आंच पर धीरे-धीरे सेंक रहा हूं इस आते हुए नवम्बर में...।

‘नवम्बर से नवम्बर तक

No comments:

Post a Comment