Tuesday, October 28, 2014

दिल का खत

कुछ बातें इतनी बेवजह किस्म की होती है कि मन चाहकर भी उनकी वजह नही तलाश पाता है वजह तो वहां तलाशी जाती है जहां कोई शक-शुबहा हो कुछ रिश्तें पानी की तरह तरल और कांच की तरफ पारदर्शी होते है उनके तटबंध बाँध पाना या किसी एक फ्रेम में उन्हें लगाना लगभग नामुमिकन होता है।उसके लिए उससे मिलना ठीक इतना ही बेवजह किस्म का था या फिर उस मेल मिलाप की वजह को स्वयं ईश्वर ही कीलित या अभिमंत्रित रखना चाहता था। उन दोनों के बीच दोस्ती से ज्यादा और प्रेम से कम जैसा कुछ था वो एक स्थाई भ्रम की धुंध में सूरज को देखने जैसा था उन रिश्तों में जनवरी की ठंड और जून की लू का कोकटेल शामिल था। उनके बीच लौकिक और अलौकिक कुछ नही था बल्कि वो अपने अपने हिस्से का निर्वात और निर्वासन भोगकर लगभग रेंगते हुए एक दुसरे के करीब पहूंचे थे दोनों ही अतीत वर्तमान और भविष्य से इतर एक नए काल की बुनियाद भरने की कोशिस करते मगर इस कोशिस में वें रोज़ परस्पर धंसते भी जाते उनका कोई सहारा नही थी यही एक सबसे बड़ा सहारा था। उन दोनों के अपने जीवन में कोई प्रेम का अभाव नही था दोनों ही लगभग तृप्त थे परन्तु बेवजह सी सही कोई एक वजह जरुर थी जिसके कारण दोनों ही क्षितिज के पार झाँक कर देखना चाहते थे यहाँ अपने-अपने घोषित/स्वीकृत सम्बन्धों में बेईमानी नही बल्कि खुद के साथ ईमानदारी का हवन चल रहा था जिसमें दोनों वक्त की समिधा लगाते समझ के मन्त्र फूंकते और विश्वास के घी से रोज़ समूल आशंकाओं को स्वाहा कर देते उनका सम्वाद अग्निहोत्र सा पवित्र था।
उन दोनों के देह ने अपने अपने विमर्श स्थाई रूप से स्थगित कर दिए थे मानो देह नश्वर भाव से रोज उनके मध्य गल कर सिमटी जाती और मन मुखर होता जाता था उन दोनों का ज्ञात अज्ञात से बड़ा था व्यक्त अव्यक्त से व्यापक था दोनों भिन्न भिन्न समय में एक ही बात को भिन्न तरीके से सोचते मगर उनके सिरे आपस में जुड़ते चले जाते उन दोनों के धड़कनों में नमी में सिकुड़ी किसी सारंगी के तारों सी कर्कशता होती मगर जब एकबार सम्वेदना सध जाती तो उनकी सरगम में राग को भी विस्मय होने लगता दोनों की तत्परता कभी अधीरता की शिकार न होती थी उन दोनों के स्पर्श सदैव कुंवारे ही रहें उनका नयापन स्पर्शो की नमी में भी अपनेपन की बोनशाई को पुनर्जीवन देने की सामर्थ्य रखता था।
उन दोनों की आँखों की दोस्ती उनकी दोस्ती से कई गुना गहरी थी दोनों एक दुसरे के पलकों पर जमी वक्त की गर्द को आंसूओं से धोते थे उनका बिस्तर उनकी करवटों का सच्चा गवाह था मगर ख़्वाबों की वजह से तकिए ने इस बात की गवाई देने से साफ़ इनकार कर दिया था कि वो दोनों गहरे अवसादयुक्त द्वंद के शिकार थे।
वे न रिक्त थे न अतिशय भरें हुए उनके पास अपना गुरुत्वाकर्षण नापने का अवैज्ञानिक यंत्र था जिसकी अदला बदली से वें इस ग्रह पर अपनी वस्तुस्थिति का आंकलन करते उनका मिलना दरअसल एक झरनें और एक नदी का मिलना था एक की चोट और एक की ओट को समझने के लिए पत्थर बनना पड़ता था वो भी मूर्ती में ढलनें की अभिलाषा को छोड़कर।
मैंने उन दोनों को समन्दर में समाते देखा आज भी लहरों पर काजल से लिखी उनकी दो दो शब्द की चिट्ठियाँ मुझ तक पहूंचती है वो कुछ कहना चाहते है मगर मै पढ़ नही पाता हूँ क्योंकि मेरे पास आँख नही और आँख होंगी भी कैसे मै कोई शख्स नही बल्कि उन दोनों का एक दिल हूँ जिसे दुनियावी तूफ़ान के बाद एक लहर ने किसी निर्जन टापू पर पटक दिया था कई बरस पहले....!

'दो-दो शब्द की चिट्ठियां'

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