Friday, October 3, 2014

छोटी खुशी

कई बार छोटी छोटी खुश होने की वजह हमारे आसपास ही होती है हम देख नही पाते है बस। कल से घर पर मै और राहुल (बड़ा बेटा) दोनों घर पर अकेले है उसकी खाने पीने और देखभाल की जिम्मेदारी मेरी है। कल उसे फिल्म दिखाई शाम को खुद पकाकर खाना खिलाया बोर्नविटा युक्त दूध बनाकर दिया दो तीन दफे।रात उसको अपने पास सुलाया दोनों एक ही चादर में सोएं रात में उसकी फ़िक्र रही कहीं पंखे में ठंड न लग रही हो आज सुबह उसको दूध और रोटी-नमक का नाश्ता कराया अभी उसको नहला कर आ रहा हूँ बाथरूम में उसके बालों में शैम्पू करते समय उसका हंसना या फिर उसकी ऐडी के आस पास का मैल उतारते समय उसका गुदगुदाना अंडरवियर पहनाते हुए उसका व्यस्कों की भांति शर्माना सच में गजब का स्प्रिचुअल प्लीज़र मिला है। हर घंटे बाद यह पूछना कि राहुल भूख तो नही लगी है अपनी जिम्मेदारी का बड़ा अहसास भर है। अभी जब उसके बाल बनाए तो मुझे खुद का बचपन याद आ गया हमारा नहाना बड़ा रोतडू किस्म का हुआ करता था आजकल के बच्चे समझदार है।
बहरहाल पिछले चौबीस घंटे बेहद जीवंत गुजरे है कभी कभी ऐसी जिन्दगी जीकर हम सच में सच्ची खुशी पातें है। राहुल की केयर में हर बात की राहुल से यह पुष्टि करवाना कि मम्मी भी ऐसे ही करती है क्या दरअसल उसकी मम्मी के कामों को कृतज्ञता से याद करने का तरीका भी रहा है जो होते हुए भी प्राय:नजर नही आता है।

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