Monday, October 20, 2014

बड़ा मूर्ख

अतीत और वर्तमान में बीच फंसा मन जब खुद की परछाई की पड़ताल करता हुआ खुद पर एक जजमेंट चस्पा करता है How stupid i was ! मै भी कितना बड़ा मूर्ख था !
कभी इमोशनल फूल तो कभी वन वे ट्रेवेलर जैसे वर्जन सामने आ खड़े हो लगभग धिक्कारते हुए खिल्ली उड़ाते है।
एक ही गलती को बार बार करने के अपने सुख अपने दुःख है जिन्हें प्रारब्ध की पीठ पर लादकर हम नियति का एक तयशुदा चक्र पूरा करते है।
समझदार दुनिया में नादानी के स्थाई दूत बनना एक किस्म की ज्यादती है मगर इस ज्यादती के साथ जीते-जीते हमारी समझदार बनने की अंतिम इच्छाशक्ति भी खिड़की से कूद आत्महत्या कर लेती है।
दुनिया के पाठ और मन की ठाठ में अक्ल पिसती है उसे कोफ़्त होती है कि कैसे तजरबें भी इस वाहियात शख्स को अपने आसपास के सच से नही मिलवा पातें है।

'तजरबा,अक्ल और गुस्ताख दिल'

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