Thursday, January 1, 2015

समय विस्मय

कोई भी साल दो हजार पन्द्रह कैसे हो सकता है। समय को अपनी सुविधा से साल महीना दिन घंटो मिनट सेकेंड में बाँट लेना मनुष्य की व्यवस्था हो सकती है। इससे इंकार नही था परन्तु साल को एक संयुक्त संख्या के रूप में पढ़ना सदैव भरम पैदा करता था।चार अंको को एक साथ जोड़ने के लिए चार युगों की ऊर्जा लगती थी। बढ़िया चश्में के बावजूद भी आँखें धुंधला जाती  फिर एक एक अक्षर को अलग अलग करके पढ़ने की कवायद करता। दो से याद आता वो दोस्त जिससे दो साल से बात नही हुई है उसका पता बदल गया है इसका प्रमाण आख़िरी में लौटे दो बैरंग खत थे। शून्य को देखकर उसके वृत्त में हिलती खुद की परछाई दिखती तो खुद को पहचान पाता जैसे ही छूने की कोशिस करता उंगली पर निर्वात चिपक जाता। एक तक आते आते कुछ संकल्प याद आतें जाते जो कभी एक हुआ करते थे फिर जरुरतों और व्यक्तित्व की कमजोरियों के चलते वो हिस्सों में विभाजित होते गए और बैमौसमी बारिश की तरह वक्त के पतनाले से बह गए । पांच को पढ़ने के लिए नया युग रचना पड़ता क्योंकि शरीर से इतर आत्मा की यात्रा का भी कुछ हिस्सा ऐसा बच गया था जो चारों युग के कालखंड में समाने से इंकार करता था। समय के विभिन्न खांचों में लौकिक असफलताएं कुछ समय के षडयंत्र तथा अस्तित्व के सरल-दुरूह बननें की प्रक्रिया बेतरतीब सी टंगी थी।  सपनों के गल्प में भी औपन्यासिकता थी और  यथार्थ गल्प की शक्ल में उपस्थित था। इसलिए साल का बीतना एक संख्या के रूप कभी मन का दस्तावेज़ नही बनता था। दरअसल जब आप खुद का यात्री होना ठीक से चिन्हित कर लेते है फिर इस बात से ज्यादा फर्क नही पड़ता कि आप समय के कौन से पहर में ठहर गए है।
हर बीतता साल आते हुआ नए साल के हाथ में वक्त की अदालत के सम्मन थमाकर जाता जिन्हें साल भर महीना अदालत के अर्दली के रूप में तामील कराता जाता। समय सापेक्ष न चलनें के वाद पर फैसला सुरक्षित रखा गया है ये अफवाह अक्सर फैलाई जाती।
उपेक्षित और गोपनीय रूप से बीते हुए साल का कैलेंडर रद्दी में पड़ा सर्दी से कराहता और नए साल के कैलेंडर से अनुभवी कराह से कहता तुम मनुष्य की उपयोगितावादी दृष्टि को नही जानते वो रच लेता है नए पुराने होने के भरम।पिछले साल मैं भी तुम्हारी तरह यूं ही खुशी से फड़फड़ा रहा था आने वाले साल तुम्हारा बिस्तर मेरे ऊपर लगा होगा तब तुम किसको अपना दर्द कहोगे क्योंकि तब तक मै बहरा हो चुका होऊंगा और नए साल के कैलेंडर की तुझमें कोई दिलचस्पी न बचेगी।
'समय-विस्मय'

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