Tuesday, January 20, 2015

नोट्स

बेख्याली के पलों में कुछ लम्हें दस्तक देते है। सफर जिनका नसीब है उनके लिए यादें एक मुफीद जरिया है खुद की तलाशी लेनें का।
ये कमबख्त यादें ही तो है जो न जीने देती है न मरनें !
दिन ब दिन मशरूफ होती दुनिया में इनके सहारे क़िस्तों में जिंदगी का कर्ज अदा किया जा सकता है।
यादें खुद ब खुद सीढियां बना दिल में दाखिल होती है वहां से बिना पता लिखे खत उठाती है और उन्हें गैर के डाकखाने में पोस्ट कर देती है।
अक्सर शाम ऐसे बैरंग खतों की आमद से रोशनी से रोशन होती है खुद की लिखावट पर यकीन करना मुश्किल होता है मगर हर्फ़ हर्फ़ आधे सच आधे झूठ की रोशनाई में नहाए हुए जब नजर आते है तब यकीन होता है कि इनका यतीम बाप मै ही हूँ।

सफर के नोट्स 

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