Sunday, January 18, 2015

पनाह

प्रायः यात्राओं में जहां जहां से गुजरता हूँ वहां कुछ न कुछ छूट ही जाता है। रुमाल,इयरफोन,चार्जर,कैप,टूथब्रश,किताब ये तो भौतिक चीजें है जो ट्रेन,बस,होटल,गेस्ट हॉउस में छूट गई है अक्सर।
इनके अलावा न जाने यात्राओं में कितनी यादें भी छूटी पड़ी है। रुहदार की तरह मेरी रूह भटकती है। आवारागर्दी के उन ठिकानों पर जहां कोई अजनबी पहली ही मुलाकात के बाद अपना सा लगने लगा था।
मेरी लापरवाह जिंदगी के किस्से यात्राओं में बिखरें पड़े है कही कुछ मुझमें छूट जाता है और कही पर मै छूट जाता हूँ।
दिलचस्प बात यह भी है कि ऐसे छूटकर भी कुछ नही छूट पाता है। यादों की हथकड़ी हमें बाँध बार बार लम्हों की अदालत में पेश करती है जहां से हमें वादामाफ गवाह की गवाही के बिनाह पर हाकिम कभी सजा सुनाता है तो कभी जमानत पर रिहा कर देता है।
खुश होने की कम और ज्यादा वजह यह भी है कि मै कुछ बेख्याली के गुनाह पर जमानत पर रिहा हूँ और जहां भर में पनाह मांगता हूँ। मेरी यात्राएं उसी गुजारिश का एक हिस्सा भर है जिनमें निर्वासन के नोटिस मेरी पीठ पर चस्पा है।

'गुनाह-पनाह'

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